पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/६६

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३८ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। मुखतमोल अधरन अरुणाई । विहसन दशनतड़ितछवि छाई। जलसुत गजरा दोइकरमाहीं । फूलन के मेलाबहुअाहीं॥ दो० हाटक सोंतनु विप्रको लसत त्रिगुणउजियार। जन सुमेरकी अंगते धसी सुरसरी धार ॥ श्वेत धोती पटुकाजरद करमें लीन्हेंबीण। मनोमोहनी मन्त्रने नरतनु धरयो प्रवीण ।। चौ. हती गुसासबके हियमाहीं । काहूलख्यो आवततेनाहीं।। दै अशीश तंडुल द्विजदीन्हें । सो नईश शीशधरिलीन्हें । करिसनमान पास बैठायो। बीरा दै वृत्तांत सुनायो। प्रजालोग इहिभांति बखानत । माधोनल कछुजादू जानत ॥ बीण बजाय बामबश कीनी । अनुरागी फिरतीरसभीनी ॥ तेरेतनलज्जातजिहरैं। हॉसि अठिलाय नामलैटेरें । माधो २ सोवत कहतीं। स्वप्नहुं बाल विकल जो रहतीं। तनकी छांह भईसँग डोलैं । हैंकासों ना दिलकी खोलें ।। मूर्छा खायगिरेपुनि धावें । असनबसन तजितोहित आवें॥ कैयो सहसन गरकी नारी । तेरेसंग फिरेंसुकुमारी॥ दो० सत्य कहौ जबानसे जोहै कस्या उपाय। कौनमंत्र मोही नरीदीजै अवैबताय ॥ माधवाबचन। महाराज गोबिन्दसुनहौं गुनहीसौबार । याबूझो बनितानिसों मोहींकहा विचार ॥ हंस्योनबोल्यो जोरिदृगदीन्हों नहीं जबाव । यूमौ धौं बनितानसों मोढिगलयो सबाब ।। राजाबचन। किहिकारणहेरो हंसो जगप्रकाश केहेत । वशीकरन पढ़िबीनमें चित बित जीहरिलेत ॥ हप्रवीण बीणा लिये मीना कृत तुवनेन । मौनगहै करलो करत गूंगाकीसीसैन ।