पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/६८

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.४० विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। जागत मुबौमशानहूं लखि जादू को ख्याल । मंत्रीउवाच । महाराजकोराज की चाह होय सौबार । तोपुरवासी राखिये द्विजको देहु निकार ॥ माधोबाच्य। कस्तुरी मृग नाभिमें कीन्ही विधिन विचार । करते रसना चुगुलकी लेते बधिकनिकार ॥ चलि आयो यगचारते वोननते संचार। राजनके दरबारमें चुगलनको इतवार । (राजावचन) माधोको अरु प्रजाको कितको कीजै शोध । मंत्रिन सों राजाकही होयननीति विरोध ।। (मंत्रीवचन) सुन माधव द्विज सत्य कहु अपने जियकोजौन। उम, त्रिय तुवराग सुनियह धौं कारण कौन ॥ (माधोवचन) वसत जिन्होंके चित्त में राधाकृष्ण मुरार । तिनकोनर नारी कहामोहत हैं कार ॥ (प्रजावचन) चौ. व्यभिचारी ज्वारी मतवारो । सुकवि जगाती दूतविचारो॥ उत्तर इन्हें बहुत कर आवै । आगलाइ पानी को धावै ॥ हारै तो चित वित हरिलेहीं । उलटो दोष तासु को देहीं । नगर सबै जिनको यश गावै । तिन पै कहा न ऊतर आवै ॥ दो० माधवनल के प्रजा के सुनि मंत्रिन के बैन। चाह्यो गोविन्दचन्द नृप परचौ तासुको लैन। कही अखाड़े नृपति के षोडश सुमुखी नारि। चारिपद्मिनी चित्रनी हस्तिशंखिनी नारि ॥