पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/७

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देखरीझी वह नार । बाढ़ो माधवा को प्यार ॥ या अन्य मति- सार है तिस पश्चात् माधवानल ने वही पंचमराग भूलकरगा- या जिसके कारण पुहुपावती देश को छोड़ना पड़ाथा जिस- को सुनि नृप सहित सबसभासद वा कामकंदला मोहितहो चि. त्र की भांति रहगये माधवानलने एक ऐसा राग गाया कि जि- ससे जो मसालें जलती थीं सो बुझ गई सो इसको कामकंदला ने दीपक राग गाकर मसालें जलादी फिर उसने घननाद गा- कर मेघों को आकाशमें आच्छादित कर दिये इसराग का शब्द सुनि वहनटी अति क्रोधकर सारङ्गनाद. गाने लगी जिस से जो मेघ घिर आये थे सो खुल गये इसके अनन्तर उस विप्रने क्रोध कर ऐसाराग गाया कि जिसका शब्द सुनि कामकंदला स्वर वा ताल भूल बेताल हो विकल भई और मूञ्छित हो थर थर कांपने लगी उस नटीकी यहदशा देख राजाकामसेन अति- क्रोधित होकर विष से ऐसे कटुवचन बोला हे द्विज तुझको अप ने गुणका ऐसा अभिमान आया जिससे मेरी सभामें विघ्नडा- ला और मेरा दिया हुआ पारितोषिकतूने मेरे सन्मुख नटी को दे दिया और रंक का रंकही रहगया तब विप्रने कहा इसकी क- ला के ऊपर मैंने आपकी शंका मान अपना मस्तक नहीं दि- या वो यदि में देदेता तोभी कुछभी न था ऐसी २ बहुतबा हुई पश्चात् उसनृपने यही कहा कि हमारा राज्य छोड़ अभी चले- जाव तब विपने वहां से उठ अपनी राहली और वहां जब काम कंदला ने मुंपसे विदाघरजाने की मांगी और आकर अपनी सहेली कोबिन्दा को भेजकर कहा कि हे विप्र आज आप मेरे गृहमें प्रवेश कर मुझे पवित्र कीजिये ऐसा कंदला का संदेशा सुनि विप्र अति प्रसन्नहो को विंदा के साथहोलिया और दोनों चलते २ कामकंदला के स्थान को पहुंचे कामदलाने विप्रका बहुत सत्कार किया और प्रीति पूर्वकदोनों को भोग विलासकर ते २ दिन १३ व्यतीत होगये एक दिन विप्र ने शोचा कि य-