पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। मदन कूरसुरीत विपरीतरति । क्लवृद्धि बुद्धिदुरगंधतनु अतिही रंगकरिनीकरति ॥ दो. सोमें तादिन बराणिहाँ कोककामको धाम । जधमाधोनल आयहै फिरपुहुपावतिग्राम ॥ (अथनायका लक्षण) दो. शशकुरङ्ग कहिवृषभवहुरि तुरङ्गक जानि । चारिभाँति बाला यथा नायक चारिबखानि ।। स विद्याविनोद पढ़ेबहुधा लखिबैसकिशोर विराजतसोई । है बिरहीकरवीण लिये मकरध्वजतासुसमाननहोई ।। बोधाबिराजत राजसभा विज नादउबेदवखानत दोई । (दिफिरों सिगरी वसु- धानलमाधवा सोनहिं नायककोई ॥ दो० रहेंअखाड़े नृपतिके षोड़श वाला तेह । अंतरकपाट लगवायके नृप बुलवाई तेह ।। इतआयसु द्विजकोदियो माधवतज्योविषाद । करवीणा संयुतसरसमोहिं सुनावोनाद ॥ चौ० योंसुनिमाधव वीणालीन्हों। फिरअलाप पंचमकोकीन्हों। सुनतेवालसबै अकुलानी। शिथिलदेह मुखकढ़तनबानी॥ बिन्दुखलिततनमन अनुरागीं। माधवभोर निहारनलागीं। बाला एक रूप मंजरी। ताने एक चातुरी करी॥ अपनेकरकी उँगलीलीन्ही । सोलकैदशनन विचदीन्ही ॥ बड़ीपीरताके तनवाढी। सोनावाल विरहतनबाढ़ी। दो. अकबकाय राजारह्यो मुखते कढ़तनबैन । जो न कानन९सुनी सो देखी निजनैन । प्रजाजाय माधोरहै दूजे दिज अपमान । मंत्रिनसोंराजाकही करियेकौनप्रमान॥ ( मंत्रीवचन) उजस्तशहर विपकेराखे । का प्रभावबहुबारकेभाखे ।