पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/७३

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। मोरन को हैं पहारघने औपहारन मोर रहैं मिलिवाहक ॥ बो धा महीपन को मुकता औ घने मुकतान को राइ विसाहक। जोधनहै तो गुनी बहुतै अरुजो गुनहै तो अनेक हैं गाहक ।। दो जिहि पब्बै कर पै धरी करकी करी गुहारि । कहै मामोदीन को हरी ऐसो मुरारि ॥ परलगाय पब्बै उड़े अरु पश्चिम ऊगै भान । जो विधि लिखी ललाटमें सो बिधिहोयनआन ॥ दै अशीश महराज को ऊभी लई उसास । त्यागि पुरी पुहुपावती माधव चल्यों उदास ॥ छप्पय । जिहि सरवर जल अमल पान कीन्हो दिन प्रति अ ति । जिहि सरवर को परशि करौ परसन्न देहगति ॥ जिहि सरव र रसरंगसंग सहबासन कीन्हो । जिहिसरवर भवकाज सरस मु का फल दीन्हो ॥ कबि बोधा सो सरवरसदा पूरण निधि युत रहे उ । माधव मराल इमिराज को है अशीश मारगगहेउ ।। चौ० सुनसुभानयारो दिलदायक । अव्यहकथानकथिवेलायक। (सखीवचन) चौ० अहो मीत ऐसी जनि भाखौ। कथिकै कथान प्राधी राखौ। (कथाप्रसंग) चौ० डगर चल्यो माधो द्विज जवहीं। गहीबाँहलीलावति तबहीं। ताको पुरबासिन धरि लीन्हों। माधव विप्र पयानो कीन्हों। छंदसुमुखी। बाला गईअपने गेह । लक्षितभयो ताको नेह ॥ ताके तात यह सुनि बात । लाग्यो करनअति उतपात॥ ताको नग्रबासीआय । लागे सीख देन बनाय॥याको वृथा दीजतुदोस सिगरेनग्रद्विज को सोस । बनितन की कहानी कौन । मोहै पुरुष अचरज तौन ॥ काहूदोष ना यहधार । भूली मंत्र के बशिनार॥ दो• धनकोनाशन गायबो घरको लटो चरित्र । घटै मान दरबार में प्रगट न कीजै मित्र ॥