पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/७४

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । छंदपद्धरिया। यहवचन प्रजा कोमानतत्त। तबमौन गयो द्वि- ज रघुदत्त । तिय भवनजाय सखि को बुलाय । गहि कंठ कियो रोदन बनाय॥ चौ० रोवत बाल विरहमद माती। ताकेरोवतबिरहनछाती।। अबक हुसखी करौं मैं कैसी। भईदशा माधो कीऐसी॥ गिरिते गिरों मरों विषखाई। तनुतजि मिलौं माधवैजाई।। मरोमिटै दुख मेरो प्यारी । कैसहुप्राण कढ़ें इहि वारी । दो. कहै तियालीलावती सुन सुमुखीसखि बात। कहांजाय गो माधवा ते देख्यो सखिजात ॥ एक संदेशो मीतको पहुँचावै तू मोर । आजभवन मेरेवसै गवनकरै उठि भोर ॥ सो. माधवनल के पास तुरतगई सुमुखी सखी। कीन्ही कथा प्रकास जो लीलावति ने कही। (माधववचन) सो. शीश ईश को देउं चढि धौरा गिरि ते गिरौं । ढूंढमित्र को लेउँ मुवा जियौं पियको सुमिरि ।। फिरभाऊ इहि धाम दादशमास विताइकै। कहयो मोर परणाम हितू भावदी बालसें। दो० गजरा लीलावतीने करते दियो उतारि। सो दै माधव मीत को चलीघरैवह नारि॥ जो माधव नलने कही अपनी कथाकराल । सो लीलावति बाल पै सबै बखानो हाल । छंदमोतीदाम । गिरी तिय लैअति दीरघश्वास । भयो सुख स्वादन को सबनास ॥ पुकारत माधवमाधवजोराकरोमकरध्वज ने अति जोर ॥ सखी सुमुखी तियकी परवीन । भली विधि ता- हि सिखावन दीन ॥ अहे सुनबाल धरै क्योंनधीर । विथा सहि चेत नराख शरीर ॥ सो. पीउ मिलन की आश जौलौं घट में प्राण हैं।