पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/७९

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विरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। करों कहांजाउँ कासें कहीं दई कहूं मनतालगैना चिन्तमन में लगीरहै ॥ दिलवरहोय तासों दिलकी बखाने पीर हीनदिलकै सो दिलदरदकी जान है । जिनके लगो नासो का पीर जानें घायल की पीरकीघाय प्रमानहै। बाधा कवि विछुरीजों मालती न बेलीतोहै औरऊकली तो नदरदबखान है । भूले जिन भरम गमाव चंचरीक कैसे अपत करील तेरो दरदबखान है। दो. त्योंविचारमाधो दयो ताबनिताको जवाब । आशिक इश्क न पाकको वरणतनहीं सवाब ॥ योसुन सबनितागईं अपने अपनेगेह । कयो विपके चित्तमें अवचर एक सनेह ॥ इतिश्रीमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषाविरहीसुभानसम्बादे आरण्यखंडेबांधोगढ़अस्वतितदशमन्तरङ्गः १० ॥ कहर च्याला नाम ॥ अथप्रसंग। (ग्यारहवाँतरंग प्रारंभः) चौ० बनितन अपनोमारगलीन्हों।माधवफिरऋतुबर्णनकीन्हों।। सुनौप्रवीणमित्रमनभावनादाहकअति बिरहिनकोसावन।। कुसुमी चीर बामका साजै । इन्द्रबधूके वेष बिराजै॥ करें गान मङ्गल आतिनीके । सुखदायक निजपतिकेजीके मुंडनझंडन आगे आवे । मो विरही को मन ललचावें ।। पैना चुभै चिसमें कोई । खूबीदेख दून दुख होई ॥ दंडक । चुनरी चुनाव दारपहिरेमृगाक्षीबनी उनी झुंड झं- डन तड़ाग तीर आवहीं। केसरसे अंगअंगरागकरे केसरकोनीवरी कसिनीके हमारी जानलल चावहीं ॥बोधा कवि जोपै नहीं- न चित्त आपने में तो ये सबै झूठे झूठेरख्यालको बनावहीं।ता- उदौबियोग मनभाउदौ न देखो यातें सावन दीखबौही तू हम को न भावहीं॥ दो० इहि प्रकार गुण कथन करि बीत्यो श्रावणमास ।