पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। इकै । आवत है मुखलौबढ़िक पुनिपीर रहै हियमेंही समाइकै ।। चौ० करगहिवीणविप्रमगलीन्हा । गवनदेशकामावतिकीन्हा।। कछु दिन मारग माहिं बितायो । क्षेम २ कामावति प्रायो॥ दंडक । चारो भागबाग वो तड़ाग लखिनीके फेर बस्ती निहारी जैसी मूरत सुचैनकी । उन्नत हवेलिनपैखड़ी अलबेली लसै रति सी नवेली क्यों समान होहि मैनकी ॥बोधा कविधन गुणरूपकी कहांलौ कहाँ दान औ पुरान गुजरान द्योसरैनकी। विसस्यो बियोग भयो माधवा मगन देख कामकैसी कुटी पुरी राजाकामसैनकी॥ दो० अष्ट सिद्धि नवनिद्धि युत घर २ करैनिवास । माधोमनमोदित भयो सोहतपाय सुबास ॥ छंदझूलना। लखि चौक द्वादश नग्रमें दिशितीन उग्रबजा र। उत्तर प्रवासनरेश के लखि कनक कलशहजार ॥ रेग्यो निहारत माधवा सुख सिंधु अहरसुवस । जितरतन दशओ चार पूरणधाम २ अनेस॥ दो तित हितकै क्षितिपति सज्यो नितप्रति सहितसुचैन । मैन ऐनते नैन लखि चौक चांदनीऐन ॥ चौ० मणिन सुगंध बिसाहतसोई । चाहत बहुत जवाहिरकोई। हाटकराज तं तुलत इक अोरा । एकै मुलवत हाथी घोड़ा। एकै बसन पटंबर खोलें । ग्राहक भांति २ के डोलैं । यह छवि देखि बिप्र सुखपावा। चलि तब मध्य चौकमें आवा॥ एके कहें विप्रइतआवो । चाहोसो हमसे फरमावो । एकै अरज करें नरनारी। बिलमो साधुदुकान हमारी ॥ दो० छबि दायक लायक लख्योबय किशोर मतिजोर। बरदुकान बरई सुवन वीरा रचतकरोर ॥ तासु पास सुख बास लहि माधोबठोजाय। करि प्रणाम सन मान करिबरई लाग्यो पांय ॥