पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/८७

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चिरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। (गाथा) महिरं दीदारकारं । सहराखत सनेहीजो नरा ।। अाशिकइश्कअपारं। किजानतहीनं रसमानवर ।। चौ० बय किशोर माधवा जैसो। लड़का हतो तमोलीतैसो॥ कहि गुलजार नाम तिहि केरो । माधव कह्यो मित्रयहमेरो ॥ बाग तड़ाग हवाकरजाहीं । पलभरि कोऊ बिछुरत नाहीं॥ लड़का बहुत नगर के प्रावें । सबहिन ये दोनों भरमावे ।। नरनारी पुरबासी जोई । माधो लखि सुखपावै सोई ॥ यतीभेष पंडित अतिलौना। नगर नरन को भयो खिलौना । आवत जबदेखे नरपावै । आदर कर सबही बिरमावै ॥ नीकी बस्तु किसीके होई । नजरकरै माधोको सोई॥ दो० धन बिनु पावतमान अति गुण मय पुरुषप्रवीन । जैसे बामसुलोचना राजत भूषणहीन । स० नेहतजै घरकी घरनी घरछोड़त मातपिताहून छिद्या। पुत्र वधूतनुजा अनुजा सुखपावहिं जो कछुहोय फलिया । सेव क तेन समीप रहै कबि बोधा घटै अंखियानसे निक्षा। दोऊप रसुख दायक होतहैं देशमें मीत बिदेशमें भिक्षा ।। इतिश्रीमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषाविरहीसुभानसम्बादे आरण्यखंडेद्वादशस्तरङ्गः १२ ॥ (अथअमावतीखंड) तेरहवां तरंगप्रारंभः॥ दो० मजलिसहोत नरेशके द्विज सुनपाईबात । कठिन बड़ी जनऊपरी तहां नआवत जात ॥ दरदभरे दारेखड़े चिन्ता कीन्हीं चित्त । कहि लहिये योरंग क्यों ना वह रसना मित्त ।। दंडक । चोरको सनेही को है सड़को सँघाती कहूं निर्गुणी को दायक सरोगी को बरारसी। निरधनको ब्योहुरो सप क्षिव्य-