पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/९०

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६२ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। जोर बो करत तैसे पूनो ते कुहूं लौ फेर फोखो करतु है ।। (भाहकथन) क. त्रेतामें साजो एकधनुष भृगुनन्दनजूनेसोई लीन्यो रघु नाथ असुरवस्थाने में । साजे दैधनुष नीके सीता जूके बालकन कीन्हें युद्ध भारी अश्वमेध जरा ठानेमें ।। वोधाकवि द्वापरमें ध- नुष धनंजय साजो करण के कारण कठोर सर तानेमें। कलऊमें कीन्हीं महाबीरनकेमाखेको कठिनकमाने तेरीभौंहयेजमानेमें। दो. अतिसुवेस सुखमा सदन श्रवणतिहारे जोइ । जनमएक रथके लसत चक्र आयँ ये दोइ ॥ (अथ नेत्र) दंडक । कारे सेतबरन अनियारे भाल शृंगार मारत जुरेते ऐसे समर अधिकारीहैं। रहतसुरंग चाहे सुरनबहुनायकन नहिं नित्त केलकरखे को हितकारी हैं। बोधा कवि चलत नमारग निवाह नाहिं नर बर पाइ मारे चाहव्यभिचारी हैं। दृगमृग एकरीति सो- बखाने वे तो कानन बिहारी येऊकानन बिहारी हैं। दो० लसत बालके भाल में रोरी बिन्द रसाल। मनो शरद शशिमें बसी बीर बहूटी लाल ॥ छंदमोतीदाम । मुकुरकपोल गोल गदकारे गाँड़ेनपरीन बीनी। जनु शशि प्रसतराहु रसकारण गरुड़अंगूठीदीनी ॥ लखिना- साको अजवतमासा सुवासघनवन सेवै । विद्रुमगलित भये धरालखिछवि प्रवाल नहिं देवै (दंतवर्णन) स०अये हिरणांक्षी तूतो हिरणकहे हैं स्याह बिद्रुम गलित होत दपर्ण तरकिगो । पन्नग पतालसिंह सेक्त कदलि कुंजच- कवा बियोगी भयो बालतै भड़किगो ॥ बोधाकबि कोकिला फिरतती बसंतहीको दंतकाट मंत सुवावनको सड़किगौ । चंद मंदकारी प्यारी मंद मुसक्यान तेरी देखदशनावलिको दाडिम दरकिगो॥