पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/९१

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ut विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा दो. कामकंदला केलसत छावत इतौ प्रकाश । जनुरबि सन्मुख आरसी करकंपित प्रामाश ॥ अथचिबुकवर्णन । ततोहेरी हिरणभोर हिरणहेरयो हरिओर हरिहेरोविधियोर गुसा यों विचारयो है। तीक्षण कटाक्ष याके विष सों सवाँरेजाने रंचक चितौन में सब रंगकियो कारयो है ॥ बोधा कवि जानिकै सरोस हरिजको विधि और २ सुधाको निवास यों निहारयो है। चिबुक ना तेरोबीर अमृतकी चांडविधै चन्द्रमा के धोखे मुखचन्दुछेदिडास्यो है। चौपइयाछंद। ठोछीपके आमकी वानिक तिल अलिछौन विराजै। अल्पभार लचिजात ग्रीवतबमस्त कबूतरलाजै ॥ कनक लतासे बनिक बाहु त्रिय अँगुरी चम्पकलीसी। कीन्हीं नखन ल- खत बहुलज्जित नखतनकी अवलीसी ॥ हाटक बरन कठिन उन्नत कुचगोल २ गदकारे । कमल बेल गेंद नारंगी चक्रवाक युगवारे ॥ विवकुच बीचसकीनासंधिमें मनमतंग उरझानो। सकैन निकसि मृडाल तारतहँ निकसिपारक्यों जानो। चम्पक कमल चन्द्रिका झूठी रँगपरवारों सोनो। रतनाकरकी लहर नि- कट कटि रेखातीननिमानो ॥ कनक ईटसी पीठ डीठयतु कनक पिड़ीउरलोनी। नाभीवर रोमावलि ब्यालीकैमनमच्छमथोनी।। अथकटिकथन । कमल मृडाल हूते दृगन छीन योगी कैसी आशापाइ रूपमानियतु है । सुमन सुगंध कवि अंकन अरथ जैसे गणित को भेद साँचियो वखानियतु है ॥ बोधाकबि सूत के प्रबान ब्रह्मज्ञान जैसे चलत हलत यों प्रमानियतु है । दृष्टि में परैना यों अदृष्टि कटितेरी प्यारी बै है तो विशेष उनमान जानियतुहै। चौपइयाछंद । गुरु नितंब उरु गदकारी लखि कदली तर लाजै । पिंडुरी गुल्फ सुढार सुल्फ अतिचरण अंगुली लाजै । लखियतु नखत रूपलखि अवली कनक जड़े जनुहीरा ॥ पूरन भौली खनखन वांकी पेंडीललितकहीरा ॥