पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/९३

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। विचारी है। गिरा२ बाज लोट लोटन कबूतरी की कंदला तिया पै एती तरलताई बारी है। (बाते प्रथमकहे हैं अथसोचित) दो० धावाधाधिक निक धुकार धिं २ सुरमंडित । तंत्रिगिदं कं तं त्रिगिदं त्रगत्रगिडकरवछंडित ॥ छंगमुहर गजमुहर पुनि लच्छब्रह्मसब ताल । तिवरी तांडव भेद संह नचत कंदला बाल ॥ थाथाथा श्रृंगादिकथकंत धुंगी धुनि थुगिस्ट । फं फं फं फुगदिक कृकंत बोलत संगीनट ।। इमिषजनेवर बीणाहि मिल झिझिमझुमसुरकरत । कंकगदगदि ककलिंलगतिलखितानंदबढ़त ॥ दो. पिलसूजै २ बहुत बूझे इतिकमसाल। आफ ताव लौ रही उदेकर बाल इतिश्रीमाधवानलकामकंदलाचारित्रभाषा विरहीसुभानसम्मा देकामावतिखंडेअखाड़ोवर्णनत्रियोदशस्तरङ्गः१३ इश्कमजाजीनाम ॥ अथप्रसङ्ग ॥ चौदहवांतरंग प्रारम्भः॥ छ तो गदंत्रगदंत्रगदंत्रगदं कुकथोकुकथोकुकथौगदं । घननं घननं घननं घननं धिकतं धिकतं धिकतं तननं ॥कतं क्रकंत ऋकतं ककतं कृगदं कृगदं कृगदं करती गृगमृगध गृग, गृगधं ततथे ततथे ततथे थगदं ।। चौ. त्रियनाचतप्रेम उमंगभरी नहिंबाचत एकवनृत्यकरी ।। लखि नृत्य अपूरब प्रेम मई । बिज के हिय लालच बेलिबई ।। सो बेलाजल भरि शीश धरिवाला थंगा नची। सहित सभा नरईश वाह २ मांच्यो बचन ।। दितिय नृत्य यहरीति थारी में मुक्ता धरे। लटन गुहे करप्रीति गति औ सुर साधै दुवो ।