पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/९४

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६६ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा ! तीजे अद्भुत येह थारी पै वाला नची। सौ २ दुहरी लेह गति न जाय थारी बचे ।। चौथे बटा अनेक फेरत नाचत सुरभरत । भूमि न आवत एक शिर पर छाये विमानयुत ।। पंचम अद्भुत और बटा एक कुचपर धस्यो। अंग २ सब गैर करनछुयो करसे फिरै ॥ चौंसठ कला प्रवीन बीन २ बालानची॥ तीन लाख दैतीन सभा सहित साहब भयो। त्रिय को गुण उनमान रीमि सबै राख्यो कछू । अधिक अपुनपौ जान विप्रन अधिकारी गुणी ॥ छंद मोतीदाम । नचीफिर तंडव मंडव जोर । घनै घनकावत- नेवर घोर ॥ तहँनटवा उच्चरै ततकार । चलै दुहरीतिहरी लहिना २॥ अदा अँग अंग उमंगत वेश । इतै गुण कौन गिनै बिनशे श॥ बजै जहँ बीन नवीन सितार। घने मिरदंगन रंग अपार ।। तहां मुहचंगनकी गतिजोर॥ मट्टै खटतालनके कलशोर ॥ चली गतिजाय अदा सुर सोइ । कहूं तिलभाध असाध न होय ॥ दो० करपद दोनों चलाकर कांटो कंठ लगाइ। मनसुनार तौलत सुघर साज बटहरा नाय ॥ चंचरीक चातुर्य चित कुचपर बैठो थाय । काटेउर पीड़ा बढ़े सके न ताहि उड़ाय ॥ अदा जात करके छुये मुख बोलै सुरजाय । खेंच पवन कुच सोत सों दीन्हों भंगउड़ाय ॥ सभा सहित साहिब तहां तिय की कला लखैन । रीझ बड़ी माधयाउर उरमें जीव रखैन । दयो त्याग महाराज को माधोनल तिहिबार । देखत सबदरवार के दयो नटीपरवार ॥ तिय जानी यों जानकी जानी विप्र सुजान। गिरजापति बाहन यथा सभा आँधरी जान ॥