पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/९७

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । ६६ अस्तन सोतसमीर बैंचि उड़ायो भृगको। दयोनटी परवार त्यागतिहारो दयो सब । शीशदयो नहिंडार शकतिहारीमान के। राजाबचन दो० गयो तालसुरभंगहो मोहछियोनहिं देख । तूयानटिनापैकरी जादूगरी बिशेख ॥ हैमजलिसकीन्हीं विघन तू गुण के अभिमान । पै अति सरजहुतै गजबगुसाहमारीजान । (माधो बचन) करिये गुसा विवेककर महाराज उनमान । संन्यासी दीजैछुरीयह तो भलीन जान ॥ है पूरवगाथा सुनीसो अबसत्यलखात । करककरीके पाउँकी क्या खरदागै जात ॥ तालगयो कंदलापहँ मोसहहो तसरोस । कपिलानाहिंन कूटिये हरहाइनकेदोस । रीमहमारी तानकी आनकान करिराज ॥ सो मिटाय चाहत करोइतराजीको साज। क. कैकै अनेक कला नटवा चढ़िवांसपैलाखतरातनतोरत । ढोलियायों कहै हौन बदौइतआपुदिवैयनफोरत ॥ बोधातिन्हें पैकहा कहिये गुणको पहिचान नहीं दृगजोरत । रीझिकी बुझि कळूनकरै फिरेखीझके खोजन कोटकटोरत ॥ सो० वाह २ करजात झैि पचै सुमेरसी। करेघनोउतपात खीजतनासी नापचै । रीझनसबसुखदेय खीझनखाहै खड़गशिर। ऐसे नृपजिन सेहरीझखीझदोऊ विफल ॥ दो० कौनकरीहेरीझकी अवहौमौनगहौन । जौनकरी है तौन अबमोसों युक्ति कहीन ॥ मैंरीमो याके गुणै मेरे येगुणपाहि ।