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बिहारी-रत्नाकर

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बिहारी-रत्नाकर नायिका पहिले तो अपनी गाय नायक की गार्यों में, विना कुछ कहे ही, मिला देना चाहती थी । पर नायक ने चाहा कि वह मेरी ओर देखे, और कुछ बोले । अतः उसने हँस कर उसकी गाय को रोका । हँसा वह इसलिए कि नायिका यह बात समझ जाय कि यह रोकना केवल हँसी से छेड़छाड़ करने के निमित्त है। तब नायिका ने मुसकिरा कर अपनी गाय नायक को, चरा लाने को कह कर, सौंपी । इस हँसी और मुसकिराहट में दोनों की आँखें चार हुईं, और मन मिल गए ॥ पखौ जोरु, बिपरीत रति रुपी सुरत-रन-धीर। करति कुलाहलु किंकिनी, गह्य मौनु मंजीर ॥ १२९ ॥ पस्यौ जोरु-परयो का अर्थ यहाँ पड़ गया, गिर गया, नीचे आ गया है, और जोरु' का अर्थ जोड़ अर्थात् प्रतिद्वंद्वी है । कुश्ती लड़ने के निमित्त जो दो पहलवान अखाड़े में उतरते हैं, उनमें से प्रत्येक दूसरे का जोड़ कहलाता है। कुश्ती लड़ते लड़ते जब एक गिर कर भूमि थाम लेता है, तो दूसरे के पक्ष वाले कहते हैं कि जोड़ पड़ गया अथवा गिर गया । इस दोहे में ‘परयौ जोरु' का अर्थ जोड़ अर्थात् नायक पड़ गया, अर्थात् नीचे आ गया, है ॥ रुपी=दृढ़तापूर्वक स्थिर हुई, डट गई । सुरत-रन-धीर= सुरत-संग्राम में अविचल रहने वाली नायिका ॥ किंकिनी= कटि में पहनने का एक भूषण, जिसमें छोटी छोटी घंटियाँ लगी रहती हैं, जो कटि के हिलने से बजती हैं। इसको छुद्रघंटिका भी कहते हैं । यह शब्द स्त्रीलिंग है । मंजीर=नूपुर । पैरों में पहनने का भूषण विशेष, जिसमें वुवुरू लगे रहते हैं, और पैर के हिलने से बोलते हैं । यह शब्द पुलिंग है ॥ (अवतरण )-रंगमहल की सखियं किंकिणी के बजने से प्रौढ़ा नायिका की विपरीत रति का अनुमान कर के आपस मैं कहती हैं--- | ( अर्थ )-मंजीरों ने [ जो कि पुल्लिंग होने के कारण नायक के पक्ष के हैं, और जो कि अब तक नायक के तथा अपने ऊर्ध्ववर्ती होने के कारण बोल रहे थे, अर्थात् अपने पक्ष का उत्कर्ष विघोषित कर रहे थे, अब ] मौन धारण कर लिया है, [ और ] किंकिणी [ जो कि लिंग होने के कारण नायिका के पक्ष की है, और जो कि अब तक नायिका के तथा अपने दबे रहने के कारण दबी अर्थात् चुप थी, अब ] कोलाहल कर रही है । [इन बातों से जान पड़ता है कि अब ] जोड़ ( नायिका का जोड़ अर्थात् प्रतिद्वंद्वी, नायक ) पड़ गया ( नीचे आ गया ) है, [ और ] सुरत-रण-धीर [ नायिका ] विपरीत में दृढ़तापूर्वक स्थिर हो रही है ( अर्थात् डटी हुई है ) । बिनती रति बिपरीत की करी परसि पिय पाइ । हँसि, अनबोलें हीं दिय ऊतरु, दियो बताइ ॥ १३० ॥ अनबोले हाँ =विना बोले ही ॥ ऊतरु=उत्तर ।। दियौ बताइ = दीपक की ओर इंगित कर के, अथवा दीपक बुझा कर ॥ | ( अवतरण )-सखी का वचन सखी से ( अर्थ )-प्रियतम ने [ प्रिया से उसके ] चरण छू कर विपरीत रति की (विपरीत रति करने के निमित्त ) बिनती की। [ प्रिया ने ] हँस कर, दीपक को बता कर ( दीपक