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बिहारी-रत्नाकर

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[ तो सही ], कौन लह ( लक्षित कर अथवा पा ) सकता था, यदि [ उसके ] शरीर की स्वाभाविक सुगंधि [ फैल कर ] वन में [ उसे ] वता न देती ।।

| अभिप्राय यह है कि उसका रंग ऐसा सुनहरा है कि फूली हुई पीत चमेली के वन मैं बैठ जाने पर उसका लक्षित होना कठिन था, पर उसके अंग की स्वाभाविक सुगंधि ने, जो पीली चमेली की गंध से श्रेष्ठ है, उसको लक्षित करा दिया । चाले की बातें चलीं, सुनत सखिनु नैं टोल । गोएँ हैं लोइन हँसत, बिहसत जात कपोल ।। १३४ ॥ टोल= गोल, मंडल ।।। ( अवतरण )-नायिका अनूदा परकीया मुदिता है। जिस नायक से इससे प्रेम था, उसी से इसका ग्याह हो गया है, और अब गौने की बात हो रही है । अथवा जिस नायक से इससे प्रेम है, वह इसके ससुराल के समीप का रहने वाला है, या और किसी कारण इसको आशा यह है कि उपपति से मिलने का अवसर ससुराल में अधिक प्राप्त होगा। अतः उसको गौने की बात चलने से प्रसन्नता हुई । पर सामान्यतः मवेलि को, गौने के समय, नैहर छुटने का दुःख ही होता है । इसलिए यह अपने प्रसन्न नेत्रों को छिपा रही है। पर उसकी प्रसन्नता इतनी अधिक है कि उसके कपोल भी विकसित हो रहे हैं। अतः आँखों के छिपाने पर भी उसके विशेष ढंग से हँसते हुए कपोल से उसका मोद प्रकट होता है। यह बक्षित कर के कोई सखी किसी अन्य सखी से कहती है ( अर्थ )-चाले ( गौने ) की बातें चली हैं, [ यह समाचार ] सखियों के टोल में सुन कर, हँसते हुए लोचनों के छिपाने पर भी [ उसके ] कपोल विहँसते ( विशेष रुप से हँसते ) जाते हैं ( अर्थात् उसको पेसा मोद हुआ है कि वह छिपाए नहीं छिपता) ॥ सनु सूक्यौ, बीत्यौ बनौ, ऊखौ लई उखारि। हरी हरी अरहरि अर्ज, धरि धरहरि जिये, नारि ।। १३५ ।। बनौ = कपास भी ।। धरहरि= धैर्य । ( अवतरण )-अनुशयाना नायिका को सखी धैर्य देती है ( अर्थ ) यद्यपि ] सन सूख गया, कपास [ का दिन ] भी बीत गया, [ और] ऊस भी उखाड़ ली गई, [ अर्थात् यद्यपि इन खेतों वाले तेरे संकेतस्थल नष्ट हो गए हैं, तथापि ] अरहर अब भी हरी भरी है, [अतः ] हे नारी, हृदय में धैर्यधर (चिंता मत कर) [क्योंकि तेरे लिए उसके खेत में सहेट बना हुआ है ] ॥ १. ऐरी लोचन हँसत ए, विगसत जात कपोल ( ४ ) । २. सहित ( २ ) । ३. सुष्यो ( ४ ) । ४. हरि उर परि जिहि नारि ( ५ ) । ५. हिय (१)।