पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/११८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
७५
बिहारी-रत्नाकर

________________

बिहारी-रत्नाकर ७५ जो ससुराल में रहता हो । 'घरहँ' में हैं अपभ्रंश के संबंधकारक की विभक्ति ज्ञात होता है । कदाचित् बिहारी के समय में इसका प्रयोग होता रहा होगा । अब इस अर्थ में घर-जमाई' प्रयुक्त होता है । ( अवतरण )-पौष मास के दिन के छोटे होने का वर्णन कवि, सुसराल में रहने वाले आमाता का परिहास करता हुआ, करता है ( अर्थ १ )-पूस के दिन का मान (१. प्रमाण । २. प्रतिष्ठा ) घर-जमाई की भाँति भले प्रकार [ ऐसा ] घट गया है [ कि अब वह ] आता जाता जाना नहीं जाता, [ और] तेज ( १. उष्णता । २. स्वभाव की उग्रता ) को छोड़ कर ठंढा ( १. शीतल । २. नम्र ) हो गया है ॥ | किसी किसी ने इस दोहे मैं मान-संबंधी अर्थ भी निकाला है । वह अर्थ भी इस प्रकार हो सकता है | ( अर्थ २ )-घर-जमाई की भाँति पूस के दिन का भली भाँति घटा हुआ मान [ अपनी ] उग्रता छोड़ कर ठंढा पड़ गया है, [ और ] आते जाते जाना नहीं जाता ॥ | -- - चलत चलत लौं लै चलें सब सुख संग लगाइ । ग्रीषस-बसर सिसिर-निसि प्यौ मो पास बसाइ ॥ १७२ ।। ग्रीषम-बासर = ग्रीष्म ऋतु का सा दिन, अर्थात् बड़ा दुःखद तथा कठिनता से व्यतीत होने वाला दिन । सिसिर-निसि = शिशिर ऋतु की सी रात, अर्थात् बड़ा कष्ट देने वाली तथा कठिनता से व्यतीत होने वाली रात ।। ( अवतरण )--नायक परदेश जाने वाला है। सखिया नायिका को धैर्य दे कर समझाती हैं कि तु घबरा मत, वह शीघ्र ही लौट अवैगे । नायिका कहती है कि तुम मुझे धैर्य क्या देती हो। मैं वियोग-दुःख का अनुभव पहले भी कर चुकी हैं। शीघ्र तथा विलंब कर बात नहीं है । सब सुख तो उनके चलते ही उनके साथ चले जाते हैं, और मेरे लिये एक एक दिन और रात काटना कठिन हो जाता है ( अर्थ )-प्रियतम चलते चलते तक ( अर्थात् जाने की कौन कहे, चलते चलते ही ) ग्रीष्म का दिन [तथा ] शिशिर की रात्रि मेरे पास बसा कर सब सुखों को [ अपने ] साथ लगा ले चलते हैं ( ले जाते हैं )[ अर्थात् उनके चलने के समय ही मेरे सब सुख पयान कर जाते हैं, और एक एक दिन तथा रात्रि का काटना कठिन हो जाता है ] ॥ बेसरि-मोती-दुति-झलक परी ओठ पर आइ ।। चूनौ होइ न चतुर तिय, क्याँ पट-पॉछयौ जाइ ॥ १७३ ॥ ( अवतरण )-नायिका के शरीर मैं नवयौवनागमन से ऐसी कांति तथा अमलता बढ़ गई है। कि उसके ओठ पर बेसर के मोती का प्रतिबिंब पड़ा है, जिसको वह, दर्पण मैं देख कर, अज्ञात होने के कारण, चूना लगा समझ कर पौंछना चाहती है। सखी उससे परिहास करती हुई कहती है-- . ( अर्थ )-[ तेरे ] ओठ पर [ यह ] बेसर के मोती की चमक की झलक आ कर पड़ी