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बिहारी-रत्नाकर

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बिहारी-रत्नाकर | ( अवतरण )-राठ गायक खंडिता नायिका से, अपना अपराध छिपाने के निमित्त, अनेक प्रकार की कपट-भरी बातें कहता है। इसी पर उसमें तथा नायिका मैं परस्पर बातचीत हुई है ( अर्थ )-[ नायिका कहती है कि ] तु कोटि ( अनेक प्रकार के) कपट करने से [अपने] चित्त में छुटकारा मत मान ( मत समझ,, अर्थात् यह मत जान कि कपट से मेरा अपराध छिप गया, मैं तेरी बातें भली भाँति जानती हैं)। [ नायक उत्तर देता है। कि] यदि [ में अापकी दृष्टि में अंततेागत्वा ] अपराधी [ ही ठहरता हूँ], ते [ मुझ को ] आँखों में अगोट (कैद ) कर के रखिए (अर्थात् मुझे नित्यप्रति आँखा ही में-आँखा के सामने ही रक्खा कीजिए ) ॥ गिरि हैं ऊँचे रसिक-मन बुड़े जहाँ हजारु । वहै' सदा पसु नरनु को प्रेम-पयोधि पगारु ।। २५१ ॥ सिक= भगवत्-लीला का स्वाद लेने वाले भक्त । स्वामी हरिदासजी की संप्रदाय रसिक-संप्रदाय अटलाती है, और उसके अनुयायी वैश्णव रसिक कहे जाते हैं । कि शव्द से यहाँ कवि का तात्पर्य भगवद्रस-रसिक ही जान पड़ता है । जहाँ=जिसमैं ॥ हजारु=सहस्र, अनंत ॥ पसु= पशुवृतिधारी, अर्थात् भगवत्-प्रेम के भावों से रहित, अरसिक ।। प्रेम-प्रेम से यहाँ कवि का तात्पर्य लौकिक प्रेम नहीं है, प्रत्युत भगवतुप्रेम है ॥ पगारु=खाई, गड़हा, अथवा पाव से हल कर पार उतर जाने के योग्य ॥ | ( अवतरण )-कवि की प्रास्ताविक उक्रि है ( अर्थ )-जहाँ (जिस प्रेम-रूपी पयोधि में ) पहाड़ से [ भी ] ऊँचे रसिक जनों के हज़ार मन डूब गए [ पर उसकी थाह न पा सके ], वही प्रेम-रूपी समुद्र मर-पशुओं (अरसिक जनों, पशुवृत्तिधारी मनुष्यों) के निमित्त सदा [एक ] खाई [ मात्र है, अथवा सुगमता से हल कर पार उतर जाने योग्य है ]॥ | भाव यह है कि प्रेम का स्वाद जानने वाले तो उसमें ऐसे मग्न हो जाते हैं कि उससे फिर न तो निकल ही सकते हैं, और न तृप्त ही होते हैं। परंतु पशुवृत्ति मनुष्य समझते हैं कि प्रेम कोई गंभीर वस्तु नहीं है, अतएव हम उससे सहज ही मैं तृप्त तथा उत्तीर्ण हो सकते हैं। भावैकु उभौंह भयौ, कछुकु परयौ भरुझाइ । सी-हरा कै मिसि हियो निसिदिन हेरत जाइ ।। २५२॥ भावकु= एक भाव मात्र ॥ पस्यौ भरुआई =भारी हो आया हुआ ॥ सीप==तालों तथा नदियाँ के किनारों पर छोटी-छोटी, बड़ी चमकदार सीपियाँ होती हैं, जिनको लड़के लड़कियाँ चुन लाते हैं, और गुथ न्थ कर सुंदर सुंदर हार अथवा अन्य ग्राभूषण बना कर पहन लेते हैं । ( अवतरण )-ज्ञातयौवना नायिका के चेष्टा का वर्णन सखी अन्य सखी से अथवा नायक से करती है १ (३ ), उहे (५) । २. के ( ५ ) । ३. भाउकु ( १ ), भावक ( ३, ५), मउ (Y)! ४. सीपि (१)। ५. मिस (१)। ६. निसु (४), निस ( ५ ) | ७. हेरति ( ३, ५ )।