पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/१६७

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बिहारी-रत्नाकर


बिहारी-रक्षाकर इस कारण नहीं कि उसके पाँव की आहट से कहीं प्रियतम उसका चित्रसारी में आना जान न जाय ॥ हँसति न झुकति=न प्रसन्न होती है, न रुष्ट होती है । हँसती तथा खिझलाती इसलिए नहीं कि अभी उसको यह नहीं बात है कि प्रियतम किस पर रीझेगा ॥ ( अवतरण )-नायक चित्रसारी में चित्र देख रहा है । नायिका भी वहाँ आ गई है। वहाँ अनेक बी-पुरुष के चित्र लगे हुए हैं। उनमें नायिका का चित्र भी है । नायिका इस बात को जानने की इच्छा से कि नायक किसके चित्र के अधिक ध्यान से रीझ कर देखता है, चुपचाप खड़ी हुई देख रही है। यही वृत्तांत कोई सखी किसी अन्य सखी से कह कर कहती है कि तू विचार कि नायिका के इस प्रकार खड़ी रहने मैं क्या भेद है ( अर्थ )-[ हे सखी, तु] विचार [ तो सही कि इसमें क्या भेद है कि वह ] द्विविधा मैं पड़े हुए चित्त से न हिलती है, न चलती है, [ और ] न हँसती है, न खिझलाती है; प्रियतम को चित्र देखते देख कर [ वह ] नारी चित्र की भाँति ( अचल रूप से, विना पलक गिराए ) ताक रही हैं ॥ ...


कन दैबौ सयौ ससुर, बहू थुरहथी जानि । रूप-रहचर्दै लगि लग्यौ मॉर्गन सबु जगु अनि ॥ २९५ ॥ थुरहथी= छोटे हाथ वाली ॥ रहच = लालच में । ( अवतरण )—यह हास्य रस का दोहा है। किसी कृपण की कृपणता पर कोई उपहास कर के रहता है ( अर्थ )-[ नई आई हुई ] बहू को थुरथी जान कर ससुर ने [ उसे भिखारियों को ]कन (कण, अन्न ) देने का काम सौंपा [ जिसमें अन्न कम लगे ]। [ पर उसके ] रूप के लालच में लग कर सारा जगत् [ उसके द्वार पर ] आ कर [ भिक्षा ] माँगने लगा [ जिससे और भी अधिक अन्न लगने लगा ] ॥ निरखि नबोढ़ानारि-तने छुटत लरिकइ-लेस । भी प्यारी प्रीतमु तियनु, मनहु चलत परदेस ।। २९६ ॥ ( अवतरण )-नवयौवना मुग्धा की मनमोहिनी शोभा का वर्णन सखी सखी से करती है ( अर्थ )-[ इस ] नवोढ़ा ( नई ब्याही हुई ) स्त्री के शरीर में से लड़कपन का लेश छूटता हुआ देख कर [ उसकी सपत्नी ] स्त्रियों को प्रियतम [ ऐसा ] प्यारा लगने लगा, मानो [ वह ] परदेश चल रहा है ॥ परदेश चलता हुआ मनुष्य इस कारण अधिक प्यारा लगता है कि उससे बहुत दिन पछे मिलने आशा होती है । इस नायिका के यौवनगमन से सौत ने समझा कि अब ऐसी सुंदरी को छोड़ कर प्रियतम हम लेग के यहाँ बड़ी कठिनता से अवेगा, अतः अब वह उनको अधिक प्रिय संगने कागा ॥ १. सबु गु मागन ( २, ३, ४)। २. त्यों ( २ ) । ३. भी । १, ४, ५ ) | ४. मनौ ( २ )।