पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/२४४

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बिहारी-रत्नाकर

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( अवतरण )-कवि वर्षा ऋतु की सघन घटाओं ( अर्थ )-पावस (वर्षा ऋतु) के घन (बादल) के अंधेरे के कारण मी (पृथ्वी में [ रात तथा दिन में ] अन्य [ कोई ] भेद ( रूपांतर) नहीं रह गया। [अब ] रात दिन [ का समय-भेद केवल ] चर्काई-चकवाओं को [ पृथक् पृथक् एवं एकत्र ] लक्षित कर के जान फ्डता है ॥ | इस दोहे मैं चकई: चकवा के वर्णन के विषय में वर्तमान विद्वानों के मत मैं विरोध है। एक दल का कथन है कि वर्षा ऋतु में चक्रवाक इस देश में नहीं रहते, अतः इस ऋतु मैं उनका वर्णन करना अस्वाभाविक है । इससे बिहारी की नैसर्गिक अज्ञानता व्यक्त होती है। दूसरा दुख कहता है कि ऐसा नहीं है, वर्षा ऋतु में भी चक्रवाक समस्थल प्रदेश में रहते हैं, और कवियों ने इस ऋतु मैं उनका वर्णन भी किया है। हमारी समझ मैं इस दोहे मैं इन झग का कोई अवसर ही नहीं है । धनाढ्य के उपवन तथा पाइँबाग़ मैं मयूर, सरस, चक्रवाक इत्यादि प्रायः पते रहते हैं, और बहुधा उनके पर भी काट दिए जाते हैं। अतएव चाहे जंगल चक्रवाक वर्षा ऋतु मैं भारतवर्ष में रहते हैं वा नहीं, पर ये बेचारे पलुवे चक्रवाक तो अवश्य ही उन उपवन मैं उपस्थित रहते हैं। जो लोग उपवनँ मैं सारस, वाक इत्यादि पालते हैं, वे उनमें कोई कृत्रिम झील इत्यादि भी बनवा देते हैं। विहारी का यह चकई-चळवाओं से तात्पर्य ऐसे ही पलुवे चकई-चकवा से है, क्याँकि रात्रि दिवस का निर्णय करने के निमित्त कोई जंगल की दूरस्थ झील को देखने क्याँ जाने लगा, विशेषतः ऐसे समय, जब कि सघन घन के कारण दिन रात्रि सा हो रहा हो । चकई-चकवाओं के शब्द भी तो ऐसे उँचे नहीं होते कि ग्राम के बाहर की झीख से ग्राम में सुनाई दें। कवि की मुख्य वर्णनीय विषय यहाँ पावस व घन अंधकार है, चकई-चकवा का वर्णन केवल गौण रीति पर, मुख्यार्थ-साधन के निमित्त, हुआ है ॥ अरुनसरुह-कर-चरन, दृग-ग्वजन, मुग्व-चंद ।। समै आइ सुंदरि सरद काहि न कति अनंद ॥ ४८७ ॥ । अवतरण )-कवि शरद् ऋतु का वर्णः, सुंदरी स्त्री से रूपक कर के, करता है ( अ )-अरुनसरोरुह-कर-चरन (जिसके हाथ पाँव लाल कमल हैं ), हभ-स्त्रजन ( जिसके दृग खंजन हैं ). [ एवं] मुख-चंद ( जिसका मुख चंद है), [ ऐसी ] शरद-रूपी सुंदरी [ अपने ] समय पर ( अधिकार पर ) आ कर किसका आनंदित नहीं करती ॥ . नाहिँन ए पाचक-प्रवल तुर्दै ६ चहुँ पास । मानहु बिरह बसंत * ग्रांषम-वेत उसास ॥ ४८८ ॥ वक-प्रबल=पाबक सी प्रबल अर्थात् प्रचंड || ग्रीषम-लेत - ग्रीष्म के द्वारा ली जाती हुई ।। . मूंछु ( १ ) । २. सुंदर ( २, ५ )1,३. करतु (१); करे ३, ४), करत, ( ५ ) । ४. चालत १ ३, ५) । ५. ले ( १ ) तेइ (४) ।