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बिहारी-रत्नाकर

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विधवारी-रखाकर तथा सधन वन में है, अदने से हिचकिचाने लगे है। यह देख कर उसके संग की पूती, उसके हृदय में ओज बढ़ाने तथा ढाढ़स बैराने के निमित्त उसके रूप की प्रशंसा करती हुई, उससे बेखटके भागे चलने का अनुरोध करती है ( अर्थ )-‘विपाकर' ( क्षपाकर, चंद्रमा ) के छिप जाने के कारण तम ( अंधकार ) के पृथ्वी को छूने ( छा ले . से [ 7 ] मत 'ससिहर' (डर ), [ प्रत्युत ] सँभाल ( १. अपने रूप के उत्कर्ष का स्मरण कर । २. अपने को सँभाल ले, चैतन्य हो जा ), [ और ] हे शशिमुखी, [ अपने ] मुख से घूघट हटा कर [१. जिसमें कि फिर चंद्रमा निकल आवे । २. जिसमें कि मार्ग भली भाँति दिखलाई ३ ] हँसती हँसती ( १. मुस्खे के हास्ययुत कर के, जिसमें कि मार्ग में प्रकाश हो जाय । २. हंसी खुशी से, जिसमें कि माई गढ़ाय नहीं )[ बेखटक ] चली चल ॥ | इस दोहे मैं कवि ने बड़ी बातरी दिखलाई है । एक ही वाक्य से दूतो नासिक के रूप की प्रशंसा कर के उसके हृदय में गर्व भी उत्पन्न करती है, जिसमें कि उसका मन अगे बढ़ने से कदम नहीं, क्याँकि हृश्य मैं गर्व व्याप्त हो जाने पर कदाई नई रइ जाती, अर उस के अँधेरे में मज़ कर तथा प्रससचित्त छ। सजने की शिक्षा भी देती है ॥ अपनें अपनै मत लगे बादि मचावत सोरु । ज्यै त्यै सब सेइबौ एकै नंदकिसोरु ।। ५८१ ॥ वादि= वृथा ।। . ( अवतरण }--कोई ज्ञानी भक्त, जो कि संसार भर को श्रीकृष्णमय समझे हुए हैं, अपना सिद्धांत मन से कहता है ( अर्थ )-[ संसार भर के भिन्न भिन्न देव-उपासक अर्थात् वैष्णव, शैव, शाक़ इत्यादी तथा भिन्न भिन्न मतवादी अर्थात् वैत, अद्वैत, वैताद्वैत इत्यादि मत वाल ] अपने अपने मत में लगे हुए ( अपने अपने सिद्धांत का समर्थन करते हुए ) वृथा हौर मचाया करते है ( वाद विवाद किया करते हैं ) । [ सच्चा सिद्धांत तो यह है कि ] सके। ये त्याँ ( किसी न किसी प्रकार, किसी न किसी रूप में ) एक नंदकिशोर ही की सेवा करना है। [ अर्थात् चाहे किसी देव की केाई सेवा करे, पर वास्तव में वह सेवा नंदकिशेर ही की होती है, क्योंकि अखिल ब्रह्मांड नंदकिशोरमय है ] ॥ लंहि सुंनै घरै कर गहत दिठाँदिठी की ईठि गड़ी सु चित नाहीं करति करि ललहीं डीठि ॥ ५२ ॥ | ( अवतरण )-नायक नायिका में केवल देखादेखी की मैत्री है। अभी विशेष परिचय नहीं हुआ है। एक दिन नायक ने नायिका के सूने घर में पा कर उसका हाथ पकड़ खिया, जिस पर नायिका ने, अपनी आँखें ललचाँहीं कर के, सी-जाति / स्वाभाविक सजा तथा इसे भय से कि कोई अ न १. लखि ( २ ) । २. सूनी ( २ ) । ३. घरु ( २ ) । ४. दिवादिखी ( २, ४ )