पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/५७

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बिहारी-रत्नाकर

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विहारी-रत्नाकर | ( अर्थ १ )-हे बारी( भोली स्त्री), [तेरा]मन [जो ] लगा है, सो सफल (प्राप्ताभीष्ट) होगा । [ तु इस ] दुखदायी रोष को निवारित कर के अपनी बारी ( पारी ) सुहृदा (मैत्री) के वारि ( वाक्य ) से सींच ( सरस कर ) ।। पर अन्य व्यक्रिय की जान मैं व मःली से यह कहती है ( अर्थ २ )-हे यारी ( माली ), [ तेरी वाटिका में ] लगा हुआ सुमन ( फूल) सफल ( फलयुत ) होगा। [ तू ] अपनी वारी (वाटिका) सुहृदता के वारि ( सानुकूल जल ) से सींच कर घाम के रोप ( प्रचंड प्रभाव ) को निवारित कर ॥ हरिचरणदास ने लिखा है कि यह दोहा बिहारी का नहीं है। यह उनका शुद्ध भ्रम है। एक तो यह दोहा सर्व प्राचीन पस्त हूँ मैं तथा हरिचरणदास के पूर्व की टीका में मिलता है, और दूसरे ऐसी उच्च कोटि का है कि बिहारी के अतिरिक्त कोई बिरला ही इसका रचयिता हो सकता है। इसमें उन्हौंने जो क्रमभंग दोष बतलाया है, वह उनको अर्थ न समझने के कारण भासित हुआ है ॥ अज तस्यौना ही रह्यौ श्रुति सेवत ईक-रंगे । नाक-घास बेसरि लह्यौ बसि मुतनु कै संग ॥ २० ॥ अजाँ ( अद्यापि )= ग्राज तक भी, अब तक भी ॥ तस्यौना-यह शब्द श्लिष्ट है । इसका एक अर्थ अधावत है और दूसरा कर्ण-भूषण विशेष, जिसको तालपर्ण तथा ताटंक भी कहते हैं, शोर भाषा में उसी को तरकी कहते हैं । श्रुति=( १ ) वेद की श्रुति । ( २ ) कान ॥ इकरंग-एक रीति पर, अविच्छिन्न रूप से ।। नाक-बास= (१) स्वर्ग-निवास । (२) नासिका का निवास ।। बेसरि=( १ ) नासिका-भूषण विशेष । (२) वेसरी,खच्चरी, अर्थात् महा अधम प्राणी । वेसर संस्कृत में खच्चर को कहते हैं। उसी से वेसरी, स्त्रीलिंग रूप, बनता है । यहाँ यह रूप अत्यंत तिरस्कार तथा लघुता का व्यंजक है । लक्षणा शक्ति से 'बेसरि' का अर्थ यहाँ वेसरी-सदृश महा अधम प्राणी होता है ।। मुकुतनु =( १ ) जीवन-मुक्त सज्जनों । ( २ ) मुक्ताओं ॥ ( अवतरण )-इस दोहे मैं कवि बेसर का वर्णन करता हुआ रलेष-बत्न से सत्संग की प्रशंसा करता है। बेसर पक्ष मैं इस दोहे का अर्थ यह होता है ( अर्थ १ )-आज तक तस्यौना ( कर्ण-भूषण ) एक ढंग से (ज्यों का त्यों ) कानों का सेवन करता हुआ (अधोवर्ती अर्थात् अमुख्यस्थान-स्थित ) तस्यौना ही रहा, [और] खेसर ने मोतियों का संग पा कर नाक-बास ( १. नासिक का वास । २. उच्च पद) प्राप्त किया ॥ कान की स्थिति पाश्र्व भाग में होने के कारण कवि ने उसे अमुख्य स्थान मान कर तथौने को अमुख्यस्थान-स्थित वर्णित किया है, और नाक शब्द का अर्थ लक्षणा शक्ति से प्रधान, मुख्य, श्रेष्ठ इत्यादि लिया है। जैसे ऐसे वक्र्यों में होता है-यह देश सब देश की नाक है ॥' सत्संग पक्ष में इस दोहे का यह अर्थ होता है१. अज्य ( १, ४) । २. तना ( ५ ) । ३. ई ( १, ५ ) । ४. एक ( ४ ) । ५. अंग ( ५ ) । ६. बेशर (५) । ७. मुफ़न ( २ ), मुक्तनि ( ५ ) ।