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बिहारी-सतसई
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अन्वय—रस-सरिता-सोतु बढ़ि जेती कटनि करतु जानु। उर आलबाल प्रेमतरु तितौ तितौ दृढ़ होतु।

जेती=जितनी। कटनि=कटाव। सरिता=नदी। स्रोत=धारा। आलबाल=थाला, वृक्ष की जड़ के पास चारों ओर से बनी हुई मेड़। उर=हृदय। तरु=वृक्ष। तितौ तितौ=उतना ही, अधिकाधिक।

रस-रूपी नदी का स्रोत बढ़कर जितना ही कटाव करता जाता है, हृदय-रूपी थाने का प्रेम-रूपी वृक्ष (कटाव के कारण गिरने के बदले) उतना ही मजबूत होता जाता है।

खल-बढ़ई बल करि थके कटै न कुवत-कुठार।
आलबाल उर झालरी खरी प्रेम-तरु-डार॥२१६॥

अन्वय—खल-बढ़ई बल करि थके कुबत-कुठार न कटै। प्रेम-नरु डार उर आलबाल खरी झालरी।

खल=दुष्ट, निन्दक। कुबत=निंदा। कुठार=कुल्हाड़ी। झालरी=हरी-भरी, सुपल्लवित। खरी=विशेष।

दुष्ट-रूपी बढ़ई जोर लगाकर थक गये, (किन्तु) निन्दा-रूपी कुठार से न काट सके। (वह) प्रेम-रूपी वृक्ष की डाल हृदय-रूपी थाने में और भी हरी-भरी (हो रही) है।

छुटत न पैयतु छिनकु बसि प्रेम-नगर यह चाल।
मार्यौ फिरि फिरि मारियै खूनी फिरै खुस्याल॥२१७॥

अन्वय—छिनकु बसि छुटन न पैयतु प्रेम-नगर यह चाल। मार्यौ फिरि फिरि मारियै खूनी खुस्याल फिरै।

छुटन न पैयतु=छुटकारा नहीं पा सकते। छिनकु=क्षण+एकु=एक क्षण।खुस्याल=खुशहाल, आनन्दयुक्त। खूनी=हत्यारा।

एक क्षण के लिए भी बसकर फिर छुटकारा नहीं पा सकते। प्रेम-नगर की यही चाल है। (यहाँ) मरे हुए को बार-बार मारा जाता और हत्या करननेवाला स्वच्छन्द घूमता है।