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सटीक : बेनीपुरी
 

निरदय नेहु नयौ निरखि भयौ जगतु भयभीतु।
यह न कहूँ अब लौं सुनी मरि मारियै जु मीतु॥२१८॥

अन्वय—नयौ निरदय नेहु निरखि जगत भयभीतु भयौ। यह अब लौं कहूँ न सुनी जु मीत मरि मारियै।

निरदय=निर्दय, दयाहीन, निष्ठुर। निरखि=देखकर। लौं=तक। जु=जो। मीत=प्रेमी।

(तुम्हारे इस) नये प्रकार के निष्ठुर प्रेम को देखकर संसार भयभीत हो गया है। यह बात तो अब तक कहीं न सुनी थी कि जो प्रेमी हो वह (स्वयं भी) मरे (और अपनी प्रेमिका को भी) मारे—आप भी विरह की आग में जले और अपनी प्रेमिका को भी जलावे।

क्यौं बसियैं क्यौं निबहियै नीति नेह-पुर नाँहि।
लगा-लगी लोइन करैं नाहक मन बँधि जाँहि॥२१९॥

अन्वय—क्यौं बसियैं क्यौं निबहियै नेह-पुर नीति नाँहि। लगालगी करैं लोइन, मन नाहक बँधि जाँहि।

नीति=न्याय। नेह-पुर=प्रेम-नगर। लगालगी=लाग-डाँट, मुठभेड़। लोइन=आँखें। नाहक=बेकसूर, निरपराध।

कैसे बसा जाय और (बसने पर) कैसे निर्वाह हो! (इस) प्रेम-नगर में न्याय तो है ही नहीं। (देखो) परस्पर लड़ती-झगड़ती तो हैं आँखें, और बेकसूर मन कैद किया जाता है!

देह लग्यौ ढिग गेहपति तऊ नेहु निरबाहि।
नीची अँखियनु हीं इतै गई कनखियनु चाहि॥२२०॥

अन्वय—देह लग्यौ ढिग गेहपति तऊ नेहु निरबाहि। नीची अँखियनु ही इतै कनखियनु चाहि गई।

देह लग्यौ=देह से सटा हुआ। ढिग=निकट। गेहपति=गृहपति=स्वामी। तऊ=तो भी। नेहु=प्रेम। नीची अँखियन=नीची आँखों से=नीची निगाह से। चाहि=देखना।