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बिहारी-सतसई
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अन्वय—पिउ चित्र निखत लखि नारि चित्र-लौं चितैं रही। बिचारि दुचित न चलति-हलति न हँसति-झुकति।

दुचितैं चित=दुविधा में पड़ा चित्त। हलति=हिलना-डोलना। बिचारि=विचार कर। चितै=देख रही है।

प्रीतम को किसी स्त्री का चित्र बनाते हुए देखकर वह स्त्री तसवीर-सी (अचल-अटल) होकर (प्रीतम के पीछे चुपचाप खड़ी) देख रही है। सोचती है, यह मेरा चित्र बन रहा है, या किसी अन्य स्त्री का। इस दुविधा में पड़ने से वह न आगे बढ़ती न हिलती-डोलती है, न हँसती है और न झुकती ही है।

नैन लगे तिहिं लगनि जनि छुटैं छुटैं हूँ प्रान।
काम न आवत एक हूँ तेरे सौक सयान॥२२७॥

अन्वय—नैन तिहि लगन जु लगे प्राण छुटैं हूँ जनि छुटै। तेरे सौक सयान एक हूँ काम न आवत।

सौक=सौ+एक=अनेक। सयान=चतुराई।

आँखें ऐसे (बुरे) लग्न में उनसे लगी हैं कि प्राण छूटने पर भी नहीं छूट सकतीं—(हे सखि!) तुम्हारी सैकड़ों चतुराई में एक भी काम नहीं आती— एक भी सफल नहीं होती।

साजे मोहन-मोह कौं मोहीं करत कुचैन।
कहा करौं उलटे परे टोने लोने नैन॥२२८॥

अन्वय—साजे मोहन मोह कौं, मोहीं कुचैन करत। कहा करौं लोने नैन टोने उलटे परे।

मोहन=श्रीकृष्ण। मोही=मुझे ही। कुचैन= व्याकुल। टोने=जादू।लोने=लावण्यमय, सुन्दर।

(मैंने इन्हें काजल आदि से) सजाया तो मोहन को मोहने के लिए, और मुझे ही व्याकुल बनाती हैं। क्या करूँ, इन लावण्यमयी आँखों के टोने उलटे पड़ गये।