पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/१११

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सटीक : बेनीपुरी
 

नोट—कहा जाता है कि जादू उलट जाने पर जादू चलानेवाले पर ही विपत्ति आती है। इस दोहे में यही बात खूबी से कही गई है। इस दोहे से बिहारी की तंत्रशास्त्र की जानकारी प्रकट होती है।

अलि इन लोइन-सरनि कौ खरौ विषम संचारु।
लगै लगाऐं एक-से दुहुअनि करत सुमार॥२२९॥

अन्वय—अलि इन लोइन-सरनि कौ संचार खरौ विषम दुहुअनि सुमार करत लगैं लगाऐं एक-से।

अलि=सखि। लोइन=आँख। सरनि=वाणों। खरो=अत्यन्त। बिषम=अद्भुत। संचार=गति। अनी=बाण की नोक। सुमार=अच्छी मार, गहरी चोट।

सखी! इन नेत्र-रूपी बाणों की गति अत्यन्त अद्भुत है। (इनकी) दोनों ओर की नोक चोट करती हैं—(आगे की निशान मारनेवाली नोक और धनुष की डोरी से सटाकर चलानेवाली पीछे की नोक—दोनों शिकार करती हैं)। (अतएव) इनका लगना और लगाना—नेत्र-रूपी बाण चलाकर किसीको घायल करना और किसीके नेत्र-रूपी बाण से घायल होना—(दोनों) एक से (दुःखदायी) हैं।

चख-रुचि चूरन डारि कै ठग लगाइ निज साथु।
रह्यौं राखि हठि लै गयौ हथाहथी मन हाथु॥२३०॥

अन्वय—चख-रुचि चूरन डारि कै ठग निज साधु लगाइ। हठि राखि रह्यौं हथाहथी मन हाथु लै गयौ।

चख-रुचि=आँखों की सुन्दरता। चूरन=बुकनी, भभूत। हथाहथी=हाथों-हाथ, अति शीघ्र।

आँखों की सुन्दरता-रूपी भभूत डालकर उस ठग (नायक) ने उसे अपने साथ लगा लिया, यद्यपि (मैं) हठ करती ही रह गई—रोकती ही रह गई— (किन्तु) वह हाथों-हाथ मेरे मन को हाथ (वश) में करके चलता बना।

नोट—ठग लोग मन्त्र-पढ़ी भभूत रखते हैं, जिसपर वह भभूत डालते हैं, वह उनके पीछे लग जाता है। इस दोहे में इसीका रूपक बाँधा गया है।