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सटीक : बेनीपुरी
 

लूटनेवाले) ठग हैं, और लगे हुए के लिए (लुक-छिपकर चुरानेवाले) चोर हैं।

नोट—जो चौकन्ने हैं वे नहीं ठगे जा सकते, और जो जगे हैं उनके घर में चोरी नहीं हो सकती। किन्तु नेत्र ऐसे जबरदस्त हैं कि चौकन्ने को ठगते और जगे हुए (के माल) को चुराते हैं। कितनी अच्छी कल्पना है!

सुरति न ताल रु तान की उठ्यौ न सुरु ठहराइ।
एरी रागु बिगारि गौ बैरी बोलु सुनाइ॥२३४॥

अन्वय—तान रु तान की सुरति न उठ्यौ सुरु न ठहराइ। एरी बैरी बोलु सुनाइ रागु बिगारि गौ।

सुरति=सुधि। बिगारि गौ=बिगाड़ गया।

ताल और तान की सुधि नहीं रही। उठाया हुआ सुर भी नहीं ठहरता। अरी (सखी)! वह वैरी (नायक) बोली सुनाकर (सारा) राग बिगाड़ गया।

नोट—नायिका गा रही थी। उसी समय उस ओर से नायक गुजरा और कुछ बोलकर चला गया। उसी पर नायिका का यह कथन है।

ये काँटे मो पाँइ गड़ि लीन्ही मरत जिवाइ।
प्रीति जतावतु भीत सौं मीतु जु काढ्यौ आइ॥२३५॥

अन्वय—ये काँटे मो पाँइ गड़ि मरत जिवाइ लीन्ही। जु प्रीति जतावतु मीति सौं मीतु आइ काढ्यौ।

मो=मेरे। जतावतु=प्रकट करते हुए।

अरे काँटे! (तूने) मेरे पैर में गड़कर (मुझे) मरने से जिला लिया, (क्योंकि) प्रीति प्रकट करते हुए डरते-डरते प्रीतम ने उसे (तुझे) आकर निकाला।

नोट—'प्रीतम' ने इसका उर्दू-अनुवाद यों किया है—

मेरे इस खार-पा ने मुझको मरने से बचाया है।
वो गुलरू खींचने को अज रहे शफकत जो आया है॥

जात सयान अयान ह्वै वे ठग काहि ठगैं न।
को ललचाइ न लाल के लखि ललचौहैं नैन॥२३६॥