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सटीक : बेनीपुरी
 

अन्वय—अति दीनता दिखाइ छिगुनी छ्वै पहुँचौ गिलत। बलि बावन की ब्यौतु सुनि बलि तुम्हें को पत्याइ।

छ्वै=छूकर। छिगुनी=कनिष्ठा अँगुली। गिलत=पकड़ लेना। बलि=पाताल के दैत्यराज। ब्यौतु=छलमय ढंग। बलि=बलैया। पत्याइ=प्रतीति करे, विश्वास करे।

अत्यन्त दीनता दिखाकर छिगुनी छूते ही पहुँचा पकड़ लेते हो। किन्तु बलि और बावन की कहानी सुनकर, बलैया, तुम्हें कौन पतिआय—तुम्हारा विश्वास कौन करे?

नोट—राधिका से कृष्ण कोई मामूली चीज माँग रहे हैं। राधिका झिड़कती है—नहीं, ऐसा होने का नहीं, यह देते ही तुम दूसरी चीज माँगने लगोगे; यों होते-होते मेरे सारे शरीर पर ही कब्जा कर लोगे; बलि से भी तुमने महज तीन डेग जमीन माँगी थी, और उसका सर्वस्व ही हर लिया, अँगुली पकड़कर पहुँचा पकड़ना तो तुम्हारी आदत ही है; अतएव, हटो, दूर हो।

नैना नैंकु न मानहीं कितौ कह्यौ समुझाइ।
तन मन हारैं हूँ हँसैं तिनसौं कहा बसाइ॥२४०॥

अन्वय—नैना नैंकु न मानहीं कितौ समुझाइ कह्यौ। तन मन हारैहूँ हँसैं, तिनसौं कहा बसाइ।

नैंकु=जरा। कितौ=कितना भी। कह्यौ=कहा। हारैं हूँ=हारने पर भी। तिनसौं=उनसे। कहा बसाइ=क्या बस चले।

नेत्र जरा भी (मेरी बात) नहीं मानते, कितना भी समझाकर कहा। (भला) जो तन-मन हारकर भी हँसता ही रहे, उसपर (किसका) कौन बस?—जो सर्वस्व गँवाकर भी हँसता ही रहे, उसको कौन सिखा-पढ़ा सकता है?

लटकि लटकि लटकतु चलतु डटतु मुकुट की छाँह।
चटक भर्यौ नटु मिलि गयौ अटक-भटक बट माँह॥२४१॥

अन्वय—लटकि लटकि लटकतु चलतु मुकुट की छाँह डटतु। चटक भर्यौ नटु भटक-मटक बट माँह मिलि गयौ।