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बिहारी-सतसई

लटकि लटकि लटकतु चलतु=झूमते हुए (इठलाता) चलता है। डटतु=देखता है। चटक भर्यौ=चटकीला, रंगीला। बट=बाट, रास्ता। माह=में।

झूमते-झामते हुए चलता है, चलते हुए अपने मुकुट की परिछाहीं देखता। वह चटकीला नट (श्रीकृष्ण), अटकते-भटकते हुए, रास्ते में (मुझसे अकस्मात्) मिल गया।

फिरि फिरि बूझति कहि कहा कह्यौ साँवरे-गात।
कहा करत देखे कहाँ अली चली क्यौं बात॥२४२॥

अन्वय—फिरि फिरि बूझत कहि साँवरे गात कहा कह्यौ। कहा करत कहाँ देखे अली क्यौं बात चली।

कहि=कहो। कहा=क्या। अली=सखी। साँवरे-गात=श्याम, श्रीकृष्ण।

बार-बार पूछती है कि कहो, उस साँवले शरीर वाले ने (तुमसे) क्या कहा? क्या करते हुए कहाँ (तुमने उन्हें) देखा? और, सखी! (मेरी) बात कैसे-कैसे चली—किस प्रकार मेरी चर्चा छिड़ी?

तो ही निरमोही लग्यौ मो ही इहैं सुभाउ।
अनआऐं आवै नहीं आएँ आवतु आउ॥२४३॥

अन्वय—तो ही निरमोही मो ही इहै सुभाउ लग्यौ। अनआऐं आवै नहीं आएऐं आवतु आउ।

ही=हृदय, मन। अनआऐं=बिना आये।

तुम्हारा मन निठुर है (उसकी संगति से) मेरे मन का भी यही स्वभाव हो गया है—वह भी निठुर हो गया है। (इसलिए) बिना (तुम्हारे) आये (मेरा मन मेरे पास) आता ही नहीं, (तुम्हारे) आने से आता है (अतएव, तुम) आओ।

नोट—प्रीतम को बुलाने के लिए कैसा तर्क है! वाह!!

दुखहाइनु चरचा नहीं आनन आनन आन।
लगी फिर ढूका दिये कानन कानन कान॥२४४॥