लिखते हर्ष होता है कि श्रीलक्ष्मीनारायण प्रेस के सुयोग्य संचालक गणपति कृष्ण गुर्जर जी ने इसे केवल १० दिनों में छापकर समाप्त कर दिया । इसके लिए हम उन्हें हृदय से धन्यवाद देते हैं ।
व्रज-विहारी का यह सर्वस्व बिहारी द्वारा संचित है । बिहारी ही इसका टीकाकर है, और बिहारी ही इसका सम्पादक-इतना ही नहीं, प्रकाशक भी इसका बिहारी ही है । इसपर पाँच बिहारियों की मुहरें लगी हैं । यदि इस टीका के सहारे हमारे पाठक भी 'सतसई-विहारी' हुए, तो यह प्रयत्न सचमुच सार्थक होगा ।
टीका लिखने, उसे सम्पादित करने और छापने में बड़ी ही शीघ्रता की गयी है । इन सब कामों के लिए केवल एक महीने का समय लगा है ।
हमारे हर्ष की मात्रा उस समय और भी बढ़ जाती है जब हम देखते हैं कि इस टीका के दो संस्करण जिस प्रकार शीघ्रता में छपे थे उसी प्रकार शीघ्रता से खप चुके और इसके नवीन संस्करण की आवश्यकता हुई । 'परिवर्द्धित और परिष्कृत' करने में 'मतवाला-मंडल' के सुप्रसिद्ध माण्डलीक सरस-साहित्य-शिल्पी हिन्दी-भूषण बाबू शिवपूजन सहाय जी ने जैसा परिश्रम उठाया है, उसके लिए इसके लेखक, सम्पादक और प्रकाशक सभी उनके चिर-ऋणी रहेंगे । केवल धन्यवाद-प्रदान से ही इस प्रकार के प्रेममय बर्ताव का परिशोध नहीं हो सकता ।
- रामलोचनशरण बिहारी