रह्यौ मोहु मिलनौ रह्यौ यौं कहि गहँ मरोर।
उत दै सखिहिं उराहनौ इत चितई मो ओर॥२५२॥
अन्वय-मोहु रह्यौ मिलन रह्यौ यौं कहि मरोर गहैं। उत सखिहिं उराहनौ दै इत मो ओर चितई।
गहैं मरोर=मुड़ गई। उत=उधर। इत=इधर। चितई=देखा।
"प्रेम भी गया और मिलना भी गया"—ऐसा कहकर वह मुड़-सी गई—अपना मुँह फेर-सा लिया। और (इस प्रकार) उधर सखी से उलहना देकर (पुनः) इधर मेरी ओर (कटाक्ष करते हुए) देखा।
नहिं नचाइ चितवति दृगनु नहिं बोलति मुसुकाइ।
ज्यौं-ज्यौं रूखी रुख करति त्यौं-त्यौं चितु चिकनाइ॥२५३॥
अन्वय—दृगनु नचाइ नहिं चितवति, मुसुकाइ बोलति नहि, ज्यौं-ज्यौं रुख रूखी करति त्यौं-त्यौं चित चिकनाइ।
दृगनु=आँखें। रूखी=उदासीन, शुष्क। रुख=चेहरा, भाव।
आँखों को नचाकर नहीं देखती—आँखों से भावभंगी नहीं करती, और मुस्कुराकर बोलती भी नहीं। किन्तु इस प्रकार ज्यों-ज्यों वह अपना रुख रूखा करती है—ज्यों-ज्यों वह रुखाई प्रकट करती है——त्यों-त्यों (मेरा) चित्त चिकनाता ही है——प्रेम से स्निग्ध ही होता है।
नोट——प्रेमिका के क्रोध से प्रेमी असन्तुष्ट नहीं। रुखाई से चित्त के रुखड़े होने की जगह चिकना होना कवि की वर्णन-चातुरी प्रकट करता है।
सहित सनेह सकोच सुख स्वेद कंप मुसकानि।
प्रान पानि करि आपनैं पान धरे मो पानि॥२५४॥
अन्वय——सनेह सकोच सुख स्वेद कंप मुसकानि सहित प्रान आपनैं पानि करि, मो पानि पान धरे।
स्वेद=पसीना। कंप=काँपना। पानि करि=हाथ में करके। पान=बीड़ा। मो=मेरे । पानि=हाथ।
प्रेम, संकोच, सुख, पसीना, कंपन और मुस्कुराहट सहित—(प्रेम में पगी, लाज में गड़ी, सुख में सनी, पसीने से भिगी, काँपती और मुस्कुराती हुई)