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बिहारी-सतसई
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नींद के समान प्रेम आ दबोचता है—बरबस प्रेम हो ही जाता है, जैसे रात में नींद आ ही जाती है।

मैं लै दयौ लयौ सु कर छुवत छिनकि गौ नीरु।
लाल तिहारौ अरगजा उर ह्वै लग्यौ अबीरु॥२५८॥

अन्वय—मैं लै दयौ सु कर लयौ, छुवत नीरु छिनकि गौ। लाल तिहारौ अरगजा उर अबीरु ह्वै लग्यौ।

लै=लेकर। सु=वह। छिनिक गौ=छन-से सूख गया। अरगजा=सुगन्धित और शीतल पदार्थों से तैयार किया हुआ एक प्रकार का लेप।

मैंने लेकर (उसे) दिया। उसने हाथ में ले लिया। (किन्तु उसके) छूते ही पानी छन-से सूख गया। (यों) है लाल, तुम्हारा (मेरे द्वारा भेजा हुआ लाल रंग का) अंगराग उस (विरहिणी) के हृदय में अबीर होकर लगा— (विरह-ज्वाला के सूख जाने से वह लाल अरमजा का गीला लेप सूखा अबीर बन गया।)

तौपर वारौं उरबसी सुन राधिके सुजान।
तू मोहन कैं उर बसी ह्वै उरबसी समान॥२५९॥

अन्वय—सुजान राधिके सुन तौपर उरबसी वारौं। तू उरबसी समान ह्वै मोहन कैं उर बसी।

वारौं=निछावर करूँ। उरबसी=उर्वशी नामक अप्सरा। सुजान=चतुर। उर बसी=हृदय में बसी। ह्वै=होकर। उरबसी=गले में पहनने का एक आभूषण, हैकल, माला या हार।

हे सुचतुरे राधिके! सुन, (मैं) तुझपर उर्वशी (अप्सरा) को निछावर करती हूँ—तुम्हारे सामने उर्वशी की कीमत कुछ नहीं, (क्योंकि) तू हार के समान श्रीकृष्ण के हृदय में बसी है।

हँसि उतारि हिय तैं दई तुम जु तिहिं दिना लाल।
राखति प्रान कपूर ज्यौं वहै चुहटिनी माल॥२६०॥

अन्वय—लाल तुम जु तिहिं दिना हँसि हिय तैं उतारि दई, वहै चुहटिनी माल कपूर ज्यौं प्रान राखति।