१०३ सटीक : बेनीपुरी हिय: - हृदय । तिहिं = उस । चुहटिनी = गुंजा, करजनी। हे लाल ! तुमने जो उस दिन हँसकर अपने हृदय से (माला) उतारकर दी सो उसी गुंजों की माला ने उसके कपूर के समान प्राण को (विलीन होने से) बचा रक्खा है। नोट-गुंजा के साथ कपूर रखने से नहीं उड़ता। रही लटू कै लाल हौं लखि वह बाल अनूप । किती मिठास दयौ दई इतै सलो. रूप ।। २६१ ॥ अन्वय-लाल हौं वह अनूप घाउ लखि लटू है रही । दई इतै सलोने रूप किती मिठास दयो। लटू = लट्ट। हौं = हम । बाल-नवयुवती, नायिका । सलो. लावण्यमय, नमकीन । मिठास = मीठापन, माधुरी। हे लाल ! मैं उस अनुपम बाला को देखकर लट्टू हो रही हूँ-मुग्ध हो रही हूँ । ईश्वर ने इतने नमकीन रूप में-इत छोटे-से लावण्यमय शरीर में, कितनी मिठास दे दी है-कितनी माधुरी भर दी है। सोहति धोती सेत मैं कनक-बरन-तन बाल । सारद-बारद-बीजुरी-भा रद कीजति लाल ॥ २६२ ।। अन्वय -कनक-वरन-तन बाल सेत धोती मैं सोहति । लाल सारद-बारद- बीजुरी-मा रद कीजति । सेत = उजला। कनक-बरन = सोने का रंग । सारद = शरत् ऋतु का। बारद = बारिद = बादल । बीजुरी=बिजली । भा= आभा । सोने के रंग-जैसे शरीरवाली (वह) बाला उजली साड़ी में शोम रही है । है लाल ! (उसकी यह शोमा देखकर) शरत् ऋतु के ( उजले) बादल में (चमकनेवाली) बिजली की प्रामा को मी रद करना चाहिए-नुच्छ समझना चाहिए। वारौं बलि तो हगनु पर अलि खंजन मृग मीन । आधी डोठि चितौनि जिहिं किए लाल आधीन ।। २६३ ।।