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सटीक : बेनीपुरी
 

हिय=हृदय। तिहिं=उस। चुहटिनी=गुंजा, करजनी।

हे लाल! तुमने जो उस दिन हँसकर अपने हृदय से (माला) उतारकर दी सो उसी गुंजों की माला ने उसके कपूर के समान प्राण को (विलीन होने से) बचा रक्खा है।

नोट—गुंजा के साथ कपूर रखने से नहीं उड़ता।

रही लटू ह्वै लाल हौं लखि वह बाल अनूप।
कितौ मिठास दयौ दई इतै सलोनैं रूप॥२६१॥

अन्वय—लाल हौं वह अनूप बाल लखि लटू ह्वै रही। दई इतैं सलोनैं रूप कितौ मिठास दयौ।

लटू=लट्ट। हौं=हम। बाल=नवयुवती, नायिका। सलोनै=लावण्यमय, नमकीन। मिठास=मीठापन, माधुरी।

हे लाल! मैं उस अनुपम बाला को देखकर लट्टू हो रही हूँ—मुग्ध हो रही हूँ। ईश्वर ने इतने नमकीन रूप में—इत छोटे-से लावण्यमय शरीर में, कितनी मिठास दे दी है—कितनी माधुरी भर दी है।

सोहति धोती सेत मैं कनक-बरन-तन बाल।
सारद-बारद-बीजुरी-भा रद कीजति लाल॥२६२॥

अन्वय—कनक-वरन-तन बाल सेत धोती मैं सोहति। लाल सारद-बारद-बीजुरी-भा रद कीजति।

सेत=उजला। कनक-बरन=सोने का रंग। सारद=शरत् ऋतु का। बारद=बारिद=बादल। बीजुरी=बिजली। भा=आभा।

सोने के रंग-जैसे शरीरवाली (वह) बाला उजली साड़ी में शोभ रही है। है लाल! (उसकी यह शोभा देखकर) शरत् ऋतु के (उजले) बादल में (चमकनेवाली) बिजली की आभा को भी रद करना चाहिए—तुच्छ समझना चाहिए।

वारौं बलि तो दृगनु पर अलि खंजन मृग मीन।
आधी डीठि चितौनि जिहिं किए लाल आधीन॥२६३॥