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बिहारी-सतसई
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अन्वय—तो गनु पर अलि खंजन मृग मीन बलि वारौं। जिहिं आधी डीठि चितौनि लाल आधीन किए।

बारौं=निछावर करूँ। बलि=बलैया लेना। दृगनु=आँखें। अलि=भौंरा। मीन=मछली। डीठि=नजर। चितौनि=चितवन। लाल=प्रीतम।

(मैं) बलैया (लूँ), तेरी आँखों पर भौंरा-खंजरीट, हिरन और मछली—— सब को—निछावर करूँ। जिन (आँखों) ने आधी नजर की चितवन से ही प्रीतम को वश में कर लिया।

नोट—भौंरे की रसिकता और कालिमा, मृग की दीर्घनेत्रता, तथा खंजन और मीन की चंचलता से स्त्री की आँखों की उपमा दी जाती है। नवयुवती सुन्दरी नायिका की आँखें रसलुब्ध, कजरारी, बड़ी-बड़ी और चंचल होती भी हैं।

देखत उरै कपूर ज्यौं उपै जाइ जिन लाल।
छिन-छिन जाति परी खरी छीन छबीली बाल॥२६४॥

अन्वय—लाल कपूर उरै ज्यौं देखत जिन उपै जाइ। छबीली बाल छिन-छिन खरी छीन परी जाति।

उरै=ओराना, चुक जाना। उपै जाइ=उड़ जाय, काफूर या गायब हो जाय। खरी=अत्यन्त। छीन=दुबली। लबीली बाल=सुन्दरी नवयुवती।

हे लाल! (मुझे भय है कि कहीं वह नायिका) कपूर के समान चुकते- चुकते उड़ न जाय। (क्योंकि तुम्हारे विरह में वह) सुन्दरी युवती क्षण-क्षण में अत्यन्त दुबली पड़ती जाती है—दुबली होती जाती है।

छिनकु छबीले लाल वह नहिं जौ लगि बतराति।
ऊख महूष पियूष की तौ लगि प्यास न जाति॥२६५॥

अन्वय—छबीले लाल छिनकु वह जौ लगि बतराति नहि तौ लगि ऊख महूष पियूष की प्यास न जाति।

छिनुक=एक क्षण। जौ लगि=जब तक। बतराति=बातचीत करती। महूष=मधु, शहद। पियूष=अमृत।