पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/१२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
बिहारी-सतसई
१०६
 

नोट—सिंगार से शरीर की शोभा भले ही हो, प्रीतम का मन आकृष्ट होना कठिन है, क्योंकि वह तो प्रेम से ही वशीभूत होता है।

नहिं परागु नहिं मधुर मधु नहिं बिकास इहिं काल।
अली कली ही सौं बँध्यो आगैं कौन हवाल॥२६८॥

अन्वय—नहिं परागु नहिं मधुर मधु इहिं काल बिकास नहिं। अली कली सौं ही बँध्यौ आगैं कौन हवाल।

परागु=फूल की सुगंधित धूलि, पुष्परज। मधु=मकरंद, पुष्परस। बिकास= खिलना। अली=भौंरा। बँध्यौ=उलझ गया है, घायल या लुब्ध हुआ है। हवाल=दशा।

न (सुगंधित) पराग है, न मीठा मकरंद, इस समय तक विकास भी नहीं हुआ है——वह खिली भी नहीं है। अरे भौंरा! कली से ही तो तू इस प्रकार उलझ गया, फिर आगे तेरी क्या दशा होगी——(अधखिली कली पर यह हाल है तो जब यह कली खिलेगी, सुगंधित पराग और मधुर मकरंद से भर जायगी, तब क्या दशा होगी।)

नोट—यही दोहा सुनकर मिर्जा राजा जयसिंह अपनी किशोरी रानी के प्रेम को कम कर पुनः राजकाज देखने लगे थे। इसीपर उन्होंने बिहारी को एक सौ अशर्फियाँ दी थीं, और इसी ढंग के दोहे रचने के लिए प्रत्येक दोहे पर सौ अशर्फियाँ पुरस्कार देने का उत्साह देकर यह सतसई तैयार कराई थी। इसलिए यही दोहा सतसई की रचना का मूल कारण माना जाता है।

टुनहाई सब टोल में रही जु सौति कहाइ।
सु तैं ऐंचि प्यौ आपु त्यौं करी अदोखिल आइ॥२६९॥

अन्वय—सब टोल में जु सौति टुनहाई कहाइ रही। सु तैं आइ प्यौ आपु त्यौं ऐंचि अदोखिल करी।

टुनहाई=जादूगरनी। टोल=टोले-महल्ले में। जु=जो। सु=वह, उसे। तैं=तुमने। ऐंचि=खींचकर, आकृष्ट कर। त्यौं=निकट, ओर। अदोखिल=दोषरहित, कलंकरहित।

समूचे टोले में (तुम्हारी) जो सौतिन (पति को अत्यन्त आकृष्ट करने