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सटीक : बेनीपुरी
 

के कारण) जादूगरनी कही जाती थी (कि इसने जादू करके नायक को वश में कर लिया है) उसे तुमने आकर, पति को अपनी ओर आकृष्ट कर, कलंकरहित कर दिया(तुम्हारी सौतिन पर से जादूगरनी होने का कलंक हट गया)।

नोट—अब लोग समझ गये कि सौतिन ने अपने रूप के जादू से ही नायक को वश में किया था। तुम अधिक रूपवती हो, सो तुम्हारे आने से नायक तुम्हारे रूप पर आकृष्ट हो गया है, और उसपर से दृष्टि फेर ली है।

देखत कछु कौतिगु इतै देखौ नैकु निहारि।
कब की इकटक डटि रही टटिया अँगुरिनु फारि॥२७०॥

अन्वय—इतै कछु कौतिगु देखत नैकु निहारि देखौ। कब की टटिया अँगुरिनु फारि इकटक डटि रही।

कौतिगु=कौतुक=तमाशा। नैकु=जरा। निहारी=गौर करके। डटि रही=देख रही है। टटिया=टट्टर।

(क्या) इस ओर कुछ तमाशा देख रहे हो? (अगर नहीं देखते तो) जरा गौर से देखो——आँखे फाड़-फाड़कर देखो। (वह न जाने) कब से टट्टर को अँगुली से फाड़कर (तुम्हारी ओर) एकटक से देख रही है।

लखि लोइन लोइननु कौं को इन होइ न आज।
कौन गरीब निवाजिबौ कित तूठ्यौ रतिराज॥२७१॥

अन्वय—लोइन लोइननु कौं लखि आज को इन न होइ। कौन गरीब निवाजिबौ कित रतिराज तूठ्यौ।

लोइन=लावण्य, शोभा। लोइननु=आँखों। को=कौन। निवाजिबौ=कृपा होगी। कित=कहाँ। तूठ्यौ=संतुष्ट हुआ है। रतिराज=कामदेव।

इन आँखों का लावण्य देखकर आज कौन इनका नहीं हो रहेगा?—कौन इन आँखों के वश में नहीं हो जायगा? (कहो, आज) किस गरीब पर कृपा होगी, कहाँ कामदेव प्रसन्न हुआ है? (कि तुम यों बनी-ठनी चली जा रही हो?)

मन न धरति मेरौ कह्यौ तूँ आपनैं सयान।
अहे परनि पर प्रेम की परहथ पारि न प्रान॥२७२॥