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बिहारी-सतसई
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अन्वय—तूँ आपनै सयान मेरी कह्यौ मन न धरति। परनि पर प्रेम की प्रान परहथ अहे पारि न।

सयान=चतुराई। अहे=है। परनि=पड़ना। परहथ=दूसरे के हाथ में। पारि=डालना, देना।

तू अपनी चतुराई में (मस्त बनी) मेरा कहना मन में नहीं धरती—मेरी बात नहीं मानती। (किन्तु यह याद रख कि) दूसरे के प्रेम में पड़ना—दूसरे के प्रेम में फँसना—(अपने) प्राणों को दूसरे के हाथ में देना है, अतः (प्राण) दूसरे के हाथ में मत दे।

बहकि न इहिं बहिनापुली जब-तब बीर बिनासु।
बचै न बड़ी सबीलहूँ चोल-घोंसुआ मांसु॥२७३॥

अन्वय—इहिं बहिनापुली न बहकि बीर जब-तब बिनासु। बड़ी सबीलहूँ चील-घोंसुआ मांसु न बचै।

बहकि=बहककर, फेर में पड़कर। बहिनापुली=स्त्रियों की आपस की मैत्री। बीर=सखी। सबील=यत्न। घोंसुआ=घोंसला, खोंता।

इस बहिनापे में मत बहको—इस कुलटा की मित्रता के धोखे में न आओ। हे सखि! जब-तब इसमें सर्वनाश (ही हुआ) है। (देखो!) बहुत यत्न करने पर भी चील के घोंसले में मांस नहीं बचता।

नोट—कोई दुष्टा स्त्री किसी भोलीभाली नवयुवती सुन्दरी से बहिनापा जोड़कर उसे बिगाड़ना चाहती है। इसपर नवयुवती सुन्दरी की प्यारी सखी उसे समझा रही है।

मैं तोसौं कैबा कह्यौ तू जिनि इन्हैं पत्याइ।
लगालगी करि लोइननु उर में लाई लाइ॥२७४॥

अन्वय—मैं तोसौं कैबा कह्यौ तू इन्हैं जिनि पत्याइ। लोइननु लगालगी करि उर में लाइ लाई।

तो सौं=तुमसे। कैबा=कितनी बार। जिनि=मत। पत्याइ=प्रतीति कर। लगालगी=लग-लगाकर, एक-दूसरे से उलझकर। लोइननु=आँखें। लाई=लगा दी। लाइ=आम, लाग, सेंध।