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बिहारी-सतसई
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नोट—

उनके देखने से जो आ जाती है मुँह पर रौनक।
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है॥—गालिब

कहा कहौं वाकी ढसा हरि प्राननु के ईस।
विरह-ज्वाल जरिबो लखैं मरिबौ भयौ असीस॥२७७॥

अन्वय—प्राननु के ईस हरि वाकी दसा कहा कहौं, बिरह-ज्वाल जरिबो लखैं मरिबौ असीस भयो।

कहा=क्या। वाकी=उसकी। जरिबो=जरना। हरि=श्रीकृष्ण। लखे=देखकर। मरिबौ=मरना। भयौ=हुए।

हे प्राणों के ईश्वर श्रीकृष्ण! उसकी दशा मैं क्या कहूँ। (उसका) विरह- बाला में जलना देख कर——तुम्हारे विरह में अपार कष्ट सहना देखकर—मरना ही आशीर्वाद हो गया (मृत्यु ही आशीर्वाद-सी सुखदायिनी मालूम पड़ती है।)

नोट

छूट जायें गम के हाथों से जो निकले दम कहीं।
खाक ऐसी जिन्दगी पर तुम कहीं औ हम कहीं॥—जौक

नैंकु न जानी परति यौं पर यौ बिरह तनु छामु।
उठति दियैं लौं नाँदि हरि लियैं तिहारो नामु॥२७८॥

अन्वय—नैंकु न जानि परति बिरह तनु छामु पर्यौ, हरि तिहारो नामु लियैं दियैं लौं नाँदि उठति।

नैंकु=जरा। छामु=क्षाम, क्षीण, दुबला। दियैं=दीपक। लौं=समान। नाँदि उठति=प्रकाशित हो उठती है। तिहारो=तुम्हारा।

जरा भी नहीं जान पड़ती—नहीं दीख पड़ती, विरह से (उसका) शरीर यो दुबला हो गया है। हे हरि! तुम्हारा नाम लेते ही वह दीपक के समान प्रकाशित हो उठती है। (इसीसे मालूम पड़ता है कि वह वर्त्तमान है, विलीन नहीं हुई है।)

दियौ सु सीस चढाइ लै आछी भाँति अएरि।
जापैं सुखु चाहतु लियो ताके दुखहिं न फेरि॥२७९॥

अन्वय—आछी भाँति अएरि दियौ सु सीस चढाइ लै जापैं चाहतु सुखु लियौ ताके दुखहिं न फेरि।