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बिहारी-सतसई
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रहने से तुम्हारे मुखचन्द्र को देखकर सब भ्रम में पड़ जाती हैं कि इस चौथ को यह पूर्णचन्द्र कहाँ से आया!)

वे ठाढ़े उमदाहु उत जल न बुझै बड़वागि।
जाही सौं लाग्यौ हियौ ताही कैं हिय लागि॥२९१॥

अन्वय—वे ठाढ़े उत उमदाहु, जत बड़वागि न बुझै। जाही सौं हियौ लाग्यौ ताही कैं हिय लागि।

उमदाहु=मदमाती-सी चेष्टा करो, अँठिलाओ। उत=उधर। बड़वागि=समुद्र की बड़वा नामक अग्नि। जाही सौं=जिससे। ताही कैं=उसी के। लागि लगो।

(देख) वे खड़े हैं, उधर ही उन्मत्त-सी चेष्टा करो—उन्हीं से लपटो-झपटो। जल से बड़वाग्नि नहीं बुझती—मुझसे तुम्हारी ज्वाला शान्त न होगी। जिससे हृदय लगा है, उसी के हृदय से जा लगो। (निकट खड़े ही हैं, फिर देरी क्यों?)

अहे कहै न कहा कह्यो तो सौं नन्दकिसोर।
बड़बोला बलि होति कत बड़े दृगनु कैं जोर॥२९२॥

अन्वय—अहे कहै न तो सौं नन्दकिसोर कहा कह्यौ। बड़े दृगनु कैं जोर बलि कत बड़बोली होति।

अहे=अरी। कहा=क्या। नन्दकिसोर=नन्दनन्दन श्रीकृष्ण। बड़बोली=बढ़-बढ़कर बातें करनेवाली। बलि=बलैया लेना।

अरी! कह न, तुझसे श्रीकृष्ण ने क्या कहा है? बड़ी-बड़ी आँखों के बल पर, बलैया जाऊँ, तू क्यों बढ़-बढ़कर बातें करती है?

मैं यह तोही मैं लखी भगति अपूरब बाल।
लहि प्रसाद-माला जु भौ तनु कदम्ब को माल॥२९३॥

अन्वय—बाल, मैं तोही मैं यह अपूरब भगति लखी, जु प्रसाद-माला लहि तनु कदम्ब की माल भौ।

बाल=बाला, नवयुवती। लहि=पाकर। भो=हुई। तनु कदम्ब की माल=जैसे कदम्ब के सुन्दर फूल में पीले-पीले सुकोमल अँकुरे निकले रहते हैं,