पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/१३९

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सटीक : बेनीपुरी
 

मंदिर=अटारी। दुति=छबि। चख=आँख। निहारि=देख।

कोठे पर खड़ी हो वह सुकुमारी (नायिका) श्रीकृष्ण की शोभा देख रही है (अत्यन्त सुकुमार होने के कारण) शरीर थक जाने पर भी (उसके प्रेम-प्लुत) नेत्र और मन नहीं थकते। अरी चतुर सखी! तमाशा तो देख।

पल न चलैं जकि-सी रही थकि-सी रही उसास।
अबहीं तनु रितयौ कहौ मनु पठयौ किहिं पास॥२९९॥

अन्वय—पल न चलैं जकि-सी रही, उसास थकि-सी रही। अबहीं तनु रितयो कहौ मनु किहिं पास पठयौ।

जकि-सी=स्तम्भित-सी, जड़-तुल्य, हक्का-बक्का, किंकर्त्तव्यविमूढ़। उसास=उच्छवास=साँस। रितयौ=खाली करके।

पलकें नहीं चलतीं—एक-टक देख रही हो। हक्का-बक्का हो गई हो (पत्थर की मूरत बन गई हो)। साँस भी थक-सी गई है—साँस भी नहीं चलती— रुक-सी गई है। अभी से—इस किशोर अवस्था में ही—शरीर को इस प्रकार खाली कर लिया, कहो, मन किसके पास भेज दिया?

नाक चढ़ै सीबी करै जितै छबीली छैल।
फिरि-फिरि भूलि वहै गहै प्यौ कँकरीली गैल॥३००॥

अन्वय—छबीली छैल जितै नाक चढ़े सीबी करै, प्यौ फिरि-फिरि भूलि वहै कँकरीली गैल गहै।

नाक चढ़े=नाक चढ़ाकर। सीबी=सीत्कार, सी-सी करना। छैल=नायिका। गहै=पकड़ता है। प्यौ=पिय, नायक। गैल=राह।

वह सुन्दरी नायिका जहाँ पर (अपने कोमल चरणों में कठोर कंकड़ियों के गड़ने से) नाक चढ़ाकर सी-सी करती है (उस समय की उसकी अलौकिक

माव-भंगी पर मुग्ध होकर) प्रीतम पुन:-पुनः भूलकर उसी कँकरीली राह को पकड़ता है—बार-बार उसे उसी राह पर ले जाता है (कि वह पुनः नाक सिकोड़कर 'सी-सी' करे!)