पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/१४१

विकिस्रोत से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१२१ सटीक : बेनीपुरी नैको तनिक भी। उहिं= उसे । जुदी करी=अलग किया, जुदा किया । हरषि जु दी तुम-तुमने जो प्रसन्न होकर दी । बास बसेरा । बास-गंध। प्रसन्न होकर जो तुमने (उसे अपनी) माला दी, वह उसे जरा भी अलग नहीं करती। हे नाल ! गन्ध के नष्ट हो जाने पर भी ( उस माला का हृदय का वास (स्थान) नहीं छूटा-सूखकर निर्गन्ध हो जाने पर भी वह माला उसके गले में ही विराज रही है। परसत पोंछत लखि रहतु लगि कपोल के ध्यान । कर लै प्यौ पाटल विमल प्यारी पठए पान ॥ ३०४॥ अन्वय-प्यौ बिमल पाटल कर लै, प्यारी पान पठए । परसत पोंछत कपोल के ध्यान नगि लखि रहतु । परसत स्पर्श करता है, छूता है। लखि रहत = देखता रहता है । ध्यान लगि = ध्यान करके । कर = हाथ । प्यो = प्रीतम । पाटल = गुलाब का फूल । बिमल = स्वच्छ, सुन्दर । पठए भेजा। प्रीतम ने (प्यारी का भेजा हुआ) सुन्दर गुलाब का फूल हाथ में लेकर (बदले में) प्यारी के पास पान भेज दिया । (और इधर प्रेम-वश उस गुलाब के फूल को वह) स्पर्श करता है, पॉछता है और (प्यारी के ) गालों का ध्यान करके (उसे एकटक) देखता है । नोट-नायिका ने गुलाब का फूल भेजा कि इसो गुलाब के रंग के समान मैं तुम्हारे प्रेम में रंगी हूँ । नायक ने उत्तर में पान भेजा कि यद्यपि बाहर से प्रकट नहीं है, तथापि इस पान के छिपे रंग के समान मैं भी तुम्हारे प्रेम-रंग में शराबोर हूँ। प्रेम का रंग लाल (खूनी) माना जाता है । मनमोहन सौं मोहु करि तूं घनस्याम निहारि । कुंजबिहारी सौं बिहरि गिरिधारी उर धारि ।। ३०५ ।। अन्वय-तूं मनमोहन सी मोहु करि घनस्याम निहारि । कुंजबिहारी सौं बिहरि गिरिधारी उर धारि । निहारि =देखना । बिहरि-विहार करना । धारि=धारण करना ।