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सटीक : बेनीपुरी
 

नैको=तनिक भी। उहिं=उसे। जुदी करी=अलग किया, जुदा किया। हरषि जु दी तुम=तुमने जो प्रसन्न होकर दी। बास=बसेरा। बास=गंध।

प्रसन्न होकर जो तुमने (उसे अपनी) माला दी, वह उसे जरा भी अलग नहीं करती। हे लाल! गन्ध के नष्ट हो जाने पर भी (उस माला का) हृदय का वास (स्थान) नहीं छूटा—सूखकर निर्गन्ध हो जाने पर भी वह माला उसके गले में ही विराज रही है।

परसत पोंछत लखि रहतु लगि कपोल कैं ध्यान।
कर लै प्यौ पाटल बिमल प्यारी पठए पान॥३०४॥

अन्वय—प्यौ बिमल पाटल कर लै, प्यारी पान पठए। परसत पोंछत कपोल कैं ध्यान नगि लखि रहतु।

परसत=स्पर्श करता है, छूता है। लखि रहत=देखता रहता है। ध्यान लगि= ध्यान करके। कर=हाथ। प्यौ=प्रीतम। पाटल=गुलाब का फूल। बिमल=स्वच्छ, सुन्दर। पठए=भेजा।

प्रीतम ने (प्यारी का भेजा हुआ) सुन्दर गुलाब का फूल हाथ में लेकर (बदले में) प्यारी के पास पान भेज दिया। (और इधर प्रेम-वश उस गुलाब के फूल को वह) स्पर्श करता है, पोंछता है और (प्यारी के) गालों का ध्यान करके (उसे एकटक) देखता है।

नोट—नायिका ने गुलाब का फूल भेजा कि इसी गुलाब के रंग के समान मैं तुम्हारे प्रेम में रँगी हूँ। नायक ने उत्तर में पान भेजा कि यद्यपि बाहर से प्रकट नहीं है, तथापि इस पान के छिपे रंग के समान मैं भी तुम्हारे प्रेम-रंग में शराबोर हूँ। प्रेम का रंग लाल (खूनी) माना जाता है।

मनमोहन सौं मोहु करि तूँ घनस्याम निहारि।
कुंजबिहारी सौं बिहरि गिरिधारी उर धारि॥३०५॥

अन्वय—तूँ मनमोहन सौं मोहु करि घनस्याम निहारि। कुंजबिहारी सौं बिहरि गिरिधारी उर धारि।

निहारि=देखना। बिहरि=विहार करना। धारि=धारण करना।