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बिहारी-सतसई
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(मोह—प्रेम—ही करना है तो) तू मनमोहन से मोह (प्रेम) कर। (देखना ही चाहती है तो) घनश्याम को देख। (विहार ही करना चाहती है तो) कुंजविहारी के साथ विहार कर और (धारण ही करना चाहती है तो) गिरिधारी को हृदय में धारण कर।

नोट—मनमोहन, घनश्याम, कुंजविहारी, गिरिधारी आदि श्रीकृष्ण के नाम हैं। सभी नाम उपयुक्त स्थान पर प्रयुक्त हैं—प्रेम करने के लिए मनमोहन, देखने के लिए श्यामसुन्दर, विहार करने के लिए वृन्दावनविहारी और धारण करने के लिए गिरिधारी—कैसा चमत्कार है!

मोहिं भरोसौ रीझिहैं उझकि झाँकि इक बार।
रूप रिझावनहारु वह ए नैना रिझवार॥३०६॥

अन्वय—मोहिं भरोसौ रीझिहैं इक बार उझकि झाँकि। वह रूप रिझावनहारु ए नैना रिझवार।

उझकि=उचककर, जरा उठकर। रिझावनहार=चित्त को आकृष्ट करनेवाले। रिझवार=रीझनेवाले, रूप देखकर लुब्ध होनेवाले।

मुझे (पूरा) भरोसा है कि (तुम देखते ही) रीझ जाओगी—(आसक्त हो जाओगी)। एक बार उचककर झाँको—जरा सिर उठाकर देखो तो सही। (नायक का) वह रूप रिझानेवाला है—आसक्त (मोहित) करनेवाला है, और तुम्हारी ये आँखें रीझनेवाली हैं—आसक्त (मुग्ध) हो जानेवाली हैं।

कालबूत-दूती बिना जुरै न और उपाइ।
फिरि ताकैं टारै बनै पाकैं प्रेम लदाइ॥३०७॥

अन्वय—कालबूत-दूती बिना और उपाइ न जुरै, फिरि प्रेम लदाइ पाकैं ताकैं टारै बनै।

कालबूत=मेहराब बनाने के समय उसके नीचे ईंट, लकड़ी आदि का दिया हुआ भराव जो मेहराब के पुख्ता हो जाने पर हटा दिया जाता है। जुरै=छुटे, जमे। और=दूसरा। टारै बनै=अलग करना ही पड़ता है। पाकैं= पक जाने पर, पक्का हो जाने के बाद। लदाइ=मेहराब का लदाव।