विहारी-सतसई १२२ १२ JE ।(मोह-प्रेम-ही करना है तो) तू मनमोहन से मोह (प्रेम) कर । (देखना ही चाहती है तो) घनश्याम को देख । (विहार ही करना चाहती है तो) कुंजविहारी के साथ विहार कर और (धारण ही करना चाहती है तो) गिरिधारी को हृदय में धारण कर । नोट-मनमोहन, घनश्याम, कुंजविहारी, गिरिधारी आदि श्रीकृष्ण के नाम हैं । सभी नाम उपयुक्त स्थान पर प्रयुक्त हैं-प्रेम करने के लिए मनमोहन, देखने के लिए श्यामसुन्दर, विहार करने के लिए वृन्दावनविहारी और धारण a करने के लिए गिरिधारी-कैसा चमत्कार है ! rai मोहिं भरोसौ रीझिहैं उमकि झाँकि इक बार । रूप रिझावनहारु वह ए नैना रिझवार ॥ ३०६ ।। का अन्वय-मोहिं भरोसौ उझकि माँ कि । वह रूप रिझा- वनहारु ए नैना रिझवार । उझकि = उचककर, जरा उठकर । रिझावनहार =चित्त को आकृष्ट करनेवाले । रिझवार =रीझनेवाले, रूप देखकर लुब्ध होनेवाले । मुझे (पूरा) भरोसा है कि (तुम देखते ही) रीझ जाओगी-(आसक्त हो जाओगी)। एक बार उचककर झाँको-जरा सिर उठाकर देखो तो सही । (नायक का) वह रूप रिझानेवाला है-श्रासक्त (मोहित ) करनेवाला है, और तुम्हारी ये आँखें रीझनेवाली हैं-आसन (मुग्ध ) हो जानेवाली हैं । 27 कालबूत-दूती बिना जुरै न और उपाइ । - फिरि ताटार बनै पाके प्रेम लदाइ ॥ ३०७॥ अन्वय-कालवून-दूती बिना और उपाइ न जुरै, फिरि प्रेम लदाइ पाकै ो रीझिहैं इक बार उसक । ताकै टार बन । कालबूत = मेहराब बनाने के समय उसके नीचे इंट, लकड़ी आदि का दिया हुआ भराव जो मेहराब के पुख्ता हो जाने पर हटा दिया जाता है। जुरै छुटे, जमे । और = दूसरा । टारै बनै = अलग करना ही पड़ता है। पाकै = पक. जाने पर, पक्का हो जाने के बाद । लदाह मेहराब का लदाव | : v