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बिहारी-सतसई
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हुई न छिप सकेगी—इतने अंधकार में भी इसकी देह की धुति देखकर लोग जान ही जायँगे कि वह जा रही है।

फूली-फाली फूल-सी फिरति जु बिमल बिकास।
भोरतरैयाँ होहु तैं चलत तोहि पिय पास॥३१०॥

अन्वय—जु फूली-फाली फूल-सी बिमल बिकास फिरति। तोहि पिय पास चलत तैं भोरतरैयाँ होहु।

फूली-फाली=विकसित और प्रफुल्लित। बिमल=स्वच्छ। भोर=प्रातःकाल, उषाकाल। तरैया=तारे, तारिकाएँ।

जो (तारिकाएँ) फूल के समान विकसित और प्रफुल्लित स्वच्छ प्रकाश के साथ (आकाश में) फिर रही हैं। प्रीतम के पास तुम्हारे चलते ही (वे सब) भोर की तारिकाएँ हो जायँगी—तुम्हारे मुखचन्द्र के प्रकाश से वे सब फीकी पड़ जायँगी।

उयौ सरद-राका-ससी करति क्यौं न चितु चेतु।
मनौ मदन-छितिपाल कौ छाँहगीरु छबि देतु॥३११॥

अन्वय—सरद-राका-ससी उयौ चितु चेतु क्यौं न करति। मनौ मदन=छितिपाल कौ छाँहगीर छबि देतु।

उयौ=उगा। सरद-राका-ससी=शरद् की पूर्णिमा का चन्द्र। मदन=कामदेव। छितिपाल=राजा। छाँहगीरु=छत्र। छबि=शोभा।

शरद् ऋतु का पूर्ण चन्द्र उग आया। (फिर भी) चित्त में चेत क्यों नहीं करती—होश में आकर मान क्यों नहीं छोड़ती? (वह चन्द्रमा ऐसा मालूम होता है) मानो मदन-रूपी राजा का छत्र शोभ रहा हो।

निसि अँधियारी नील-पटु पहिरि चली पिय-गेह।
कहौ दुराई क्यौं दुरै दीप-सिखा-सी देह॥३१२॥

अन्वय—अँधियारी निसि नील-पटु पहिरि पिय-गेह चली। कहौ दीप-सिखा-सी देह दुराई क्यौं दुरै?

पटु=वस्त्र, साड़ी। गेह=घर। दुराई=छिपाने से। दीप-सिखा=दीप-शिखा=दीये की लौ।