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सटीक : बेनीपुरी
 

अँधेरी रात में नीली साड़ी पहनकर (गुप्त रूप से मिलने के लिए) प्रीतम के घर को चली, किन्तु कहो तो (उसकी) दीये की लौ के समान (प्रकाशवान्) देह छिपाने से कैसे छिपे?

नोट—दोहा सं० ३०९ के अर्थ से इसके भाव का मिलान कीजिए।

छिपैं छपाकर छिति छुवैं तम ससिहरि न सँभारि।
हँसति हँसति चलि ससिमुखी मुख तैं आँचरु टारि॥३१३॥

अन्वय—छपाकर छिपैं छिति तम छुवैं न ससिहरि सँभारि। ससिमुखी मुख तैं आँचरु टारि हँसति हँसति चलि।

छिपैं=छिप गया। छपाकर=चन्द्रमा। छिति=पृथ्वी। छुवैं=छू गया। तम=अंधकार। ससिहरि न=सिहर मत, डर मत। सँभारि=सँभलकर। टारि=हटाकर।

चन्द्रमा छिप गया। पृथ्वी को अंधकार छू रहा है। (किन्तु इससे अँधेरा हुआ जानकर) तू डर मत, सँभल जा। अरी चन्द्रमुखी! मुख से घूँघट हटाकर हँसती-हँसती चल (तेरे मुख और दाँतों की चमक से आप ही पथ में उजाला हो जायगा।)

नोट—यह शुक्लाभिसारिका नायिका है। किन्तु कृष्णाभिसारिका नायिका पर कुछ इसी भाव का एक कवित्त द्विजदेव कवि का है। उसके अन्तिम दो चरण देखिए—"नागरी गुनागरी सु कैसे डरै रैनि डर जाके अंग सोहैं ये सहायक अनंद री। वाहन मनोरथ अमा है सँगवारी सखी मैनमद सुभट मसाल मुखचंद री।"

अरी खरी सटपट परी बिधु आधैं भग हेरि।
संग लगे मधुपनु लई भागनु गली अँधेरि॥३१४॥

अन्वय—अरी आधैं मग बिधु हरि खरी सटपट परी। संग लगे मधुपनु भागनु गली अँधेरि लई।

खरी=अत्यन्त, अधिक। सटपट परी=सकपकाइट में पड़ गई। मग=रास्ता। हेरि=देखकर। मधुपनु=मधुपों से, मधुपों के कारण। भागनु=भाग्य से। अँधेरि लई=अँधियारी हो गई।