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बिहारी सतसई
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अरी! आधी राह पर चन्द्रमा को देखकर तुम बहुत सकपकाहट में क्यों पड़ गई हो—ज्योंही आधी राह खतम हुई कि चन्द्रोदय देखकर असमंजस में पड़ गई (कि मैं जाऊँ या नहीं, और यदि जाऊँ, तो कैसे जाऊँ, कहीं कोई देख न ले) किन्तु (शरीर की सुगंध के लोभ से) साथ लगे हुए भौंरों के कारण भाग्य से ही गली में अँधियारी छा गई। (जिससे तुम्हें कोई नहीं देख सकेगा।)

जुबति जोन्ह मैं मिलि गई नैंकु न होति लखाइ।
सौंधे कैं डौरें लगी अली चली सँग जाइ॥३१५॥

अन्वय—जुबति जोन्ह मैं मिलि गई, नैंकु न लखाइ होति। सौंधे कैं डोरैं लगी अली सँग चली जाइ।

जुबति=जवान स्त्री। जीन्ह=चाँदनी। नैंकु=तनिक। सौंधे=सुगंध। डोरैं लगी=डोर पकड़े, डोरियाई हुई, आश्रय (सहारे) से। अली=सखी।

नवयौवना (नायिका) चाँदनी में मिल गई—उसका प्रकाशवान् गौर शरीर चन्द्रमा की उज्ज्वल किरणों में साफ मिल गया—जरा भी नहीं दीख पड़ी! (अतएव, उसकी) सखी सुगंध की डोर पकड़े—उसके शरीर की सुगंध का सहारा लेकर—(पीछे-पीछे) साथ में चली गई।

ज्यौं ज्यौं आवति निकट निसि त्यौं त्यौं खरी उताल।
भमकि झमकि टहलैं करै लगी रहँचटैं बाल॥३१६॥

अन्वय—ज्यौं ज्यौं निसि निकट आवति त्यौं त्यौं खरी उताल रहँचटैं लगी बाल झमकि झमकि टहलैं करै।

निसि=रात। खरी=अत्यन्त, अधिक। उताल=उतावली, जल्दीबाजी। टहलैं=कामकाज। रहँचटैं-लगी=लगन लगी, प्रेम-पगी।

ज्यों-ज्यों रात निकट आती है—ज्यों-ज्यों दिन बीतता जाता और रात पहुँचती जाती है—त्यों-त्यों अत्यन्त उतावली से वह प्रेम में पगी बाला (प्रियतम के मिलन का समय निकट आता जान) झमक-झमककर (ताबड़तोड़) घर की टहलें करती है।