१२७ सटीक : बेनीपुरी मुकि-मुकि झपकौंहें पलनु फिरि-फिरि जुरि जमुहाइ । बीदि पियागम नींद मिसि दी सब अली उठाइ ॥३१७॥ अन्वय-पियागम बीदि झपकोहैं पजन झुकि झुकि फिरि-फिरि जुरि जमुहाइ, नींद मिसि सब अली उठाइ दीं। झपकों हैं = झपकती (ऊँघती) हुई। पलनु = पलकों से । जमुहाई = जुभाई (अंगड़ाई ) लेकर । बींदि=( संस्कृत 'विदु' =जानना) जानकर । पियागम=प्रीतम का आगमन | मिसि =बहाना । ( उस नायिका ने) प्रीतम के आगमन ( का समय ) जान झपकती हुई पलकों से झुक झुककर और बार-बार मुड़ती हुई जमाई लेकर नींद के बहाने सब सखियों को उठा (जगाकर हटा) दिया (सब सखियाँ उसे ऊँघती हुई जानकर चली गई। अंगुरिन उचि भरु भोति दे उलमि चितै चख लोल। रुचि सौं दुहूँ दुहूँन के चूमे चारु कपोल ।। ३१८ ॥ अन्वय-अँगुरिन उचि, मीति मरु दे, उळमि लोल घख चितै, दुहूँ रुचि सौं दुहुँन के चारु कपोल चूमे । उचि = उचककर । भरु =भार । भीति=भित्ति, दीवार । उलमि= उझक- कर । चख= आँख । लोल = चंचल । रुचि= प्रेम । दुहूँन = दोनों । चारु = सुन्दर । कपोल =गाल । (पैर की ) अँगुलियों पर उचक-अँगुलियों पर खड़ी हो-दीवार पर शरीर का मार दे और उझककर चंचल आँखों से ( इधर-उधर ) देखकर दोनों ने प्रेम से दोनों के सुन्दर गालों का (परस्पर ) चुम्बन किया । नोट - नायिका और नायक के बीच में उन दोनों से कुछ ऊँची दीवार यो। उस समय उन दोनों ने जिस कौशल से परस्पर चुम्बन किया था, उसी का वर्णन इस दोहे में है । चाले की बात चलीं सुनत सखिनु के टोल । गोऍहू लोचन हंसत विहँसत जात कपोल ।। ३१९ ।। . ।