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बिहारी-सतसई
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हेरि=देखना। इत=इधर, मेरी ओर। हितु-समुहैं=प्रेमी के सामने। चित=हृदय। डीठि=दृष्टि, नजर। पुलकैं=रोमांच।

मुँह फेरकर इधर देख रही हो, (किन्तु) हे बाले! (तुम्हारा) चित्त तो अपने प्रेमी के सामने है। यद्यपि तुम मेरी ओर देख रही हो, किन्तु तुम्हारा मन सामने खड़े हुए नायक की ओर है। (नायक को) नजर पड़ते ही (प्रेमावेश में तुम्हारी) पीठ को पुलकें उठकर (पीठ के रोंगटे खड़े होकर) यह बात पुकार-पुकारकर कह रही हैं।

दोऊ चाह भरे कछू चाहत कह्यौ कहैं न।
नहि जाँचकु सुनि सूम लौं बाहिर निफसत बैन॥३२५॥

अन्वय—दोऊ चाह भरे कछू कह्यौ चाहत, कहैं न, जाँचकु सुनि सूम लौं बाहिर बैन नहिं निकसत।

चाह=प्रेम। सूम=कंजूस, कृपण, धरकट। जाँचकु=भिक्षुक, मँगता। लौं=समान। बैन=वचन।

दोनों चाह से भरे—प्रेम में पगे—(एक दूसरे को) कुछ कहना चाहते हैं किन्तु कह नहीं सकते। याचक के आने की खबर सुनकर सूम के समान उनके वचन बाहर नहीं निकलते—जिस प्रकार याचक के आने की खबर सुनकर सूम घर से बाहर नहीं निकलता, उसी प्रकार उन दोनों के वचन भी मुख से बाहर नहीं होते।

लहि सूनैं घर कर गहत दिखादिखी की ईठि।
गड़ी सुचित नाहीं करति करि ललचौंही डीठि॥३२६॥

अन्वय—दिखादिखी की ईठि सूने घर लहि करु गहत। डीठि ललचौंही करि नाहीं करति सुचित गड़ी।

लहि=पाकर। सूने=शून्य, एकान्त, अकेला। करु=हाथ। ईठि = इष्ट, प्रेम। ललचौंही=ललचानेवाली।

(उसकी मेरी) देखादेखी की ही प्रीति थी—बातें तक नहीं हुई थीं, केवल वह मुझे देखती थी और मैं उसे देखता था, इसी में प्रेम हो गया था। (एक