पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/१५०

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. दोऊ चाह भरे FIPTS

बिहारी-सतसई १३० हेरि देखना । इत=इधर, मेरी ओर । हितु-समुहैं प्रेमी के सामने । चित= हृदय । डोठि = दृष्टि, नजर । पुलक रोमांच | FIED मुँह फेरकर इधर देख रही हो, (किन्तु ) हे बाले ! (तुम्हारा) चित्त तो अपने प्रेमी के सामने है। यधपि तुम मेरी ओर देख रही हो, किन्तु तुम्हारा मन सामने खड़े हुए नायक की ओर है । ( नायक को) नजर पड़ते ही (प्रेमा- वेश में तुम्हारी) पीठ को पुलके उठका (पीठ के रोंगटे खड़े होकर ) यह बात पुकार-पुकारकर कह रही हैं। कळू चाहत कयौ कहैं न । नहि जाँचकु सुनि सूम लौं बाहिर निफसत बैन ॥ ३२५ ॥ अन्वय-दोऊ चाह मरे कछू कह्यौ चाहत, कहैं न, जाँचकु सुनि सूम नौं बाहिर बैन नहिं निकसत । IFFIP चाह = प्रेम । सूम = कंजूम, कृपण, धरकट । जाँचकु = भिक्षुक, मँगता । लौं = समान । बैन = वचन । दोनों चाह से भरे-प्रेम में पगे-(एक दूसरे को) कुछ कहना चाहते हैं किन्तु कह नहीं सकते । याचक के आने की खबर सुनकर सूम के समान उनके वचन बाहर नहीं निकलते-जिस प्रकार याचक के आने की खबर सुनकर सूम घर से बाहर नहीं निकलता, उसी प्रकार उन दोनों के वचन भी मुख से बाहर नहीं होते। लहि सूनें घर कर गहत दिखादिखी की ईठि । मा गड़ी सुचित नाहीं करति करि ललचौंही डीठि ॥ ३२६ ॥ अन्वय-दिखादिखी की ईडि सूने घर लहि करु गहत । डीठि ललचौंही करि नाहीं करति सुचित गड़ी। लहि: = पाकर । सूने = शून्य, एकान्त, अकेला । करु - प्रेम । ललचौंही = ललचानेवाली। | करु = हाथ । ईठि होम (उसकी मेरी) देखादेखी की ही थी बात तक नहीं हुई थीं, केवल वह मुझे देखती थी और मैं उसे देखता था, इसी में प्रेम हो गया था। (एक "9" ईठि = इष्ट,