१३१ सटीक : बेनीपुरी दिन) सूने घर में ( उसे) पाकर (मैंने उसकी) बाँह पकड़ी। उस समय वह आँखें ललचौंही बनाकर 'नाहीं-नाहीं' करती हुई मेरे चित्त में गड़ गई-बाँह पकड़ते ही अभिलाषा-मरी आँखों से उसने जो 'नहीं-नहीं' की सो हृदय में गड़ रही है। गली अँधेरी साँकरी भौ भटभेरा आनि । परे पिछानै परसपर दोऊ परस पिछानि ॥ ३२७ ॥ अन्वय–साँकरी अँधेरी गली आनि भटभेरा भौ। परस पिछानि दोऊ परसपर पिछाने परे। साँकरी = तंग, पतली । भौ भटभेरा = मुठभेड़ हुई, टक्कर लड़ी । आनि = आकर । पिछाने =पहचाने । परस पिछानि = स्पर्श की पहचान से | (नायिका नायक से मिलने जा रही थी और नायक नायिका से मिलने श्रा रहा था कि इतने ही में) पतली और अँधेरी गली में आकर (दोनों की) मुठभेड़ हो गई-एक दूसरे से टकरा गये । (और टकराते ही शरीर के) स्पर्श की पहचान से दोनों परस्पर पहचान गये-एक दूसरे को स्पर्श करके ही एक दूसरे को पहचान गया । हरपि न बोली लखि ललनु निरखि अमिलु सँग साथु । आखिनु ही मैं हसि धर्यो सीस हिय धरि हाथु ।। ३२८॥ अन्वय-सँग साथु अमिलु निरखि ललनु लखि हरांष बोली न । आँखिनु मैं ही हँसि हाथु हिय धरि सीस धस्यौ । ललन = प्यारे, श्रीकृष्ण । अमिलु = बेमेल, अनजान । हिय =हृदय । संगी-साथियों को अपरिचित जान श्रीकृष्ण को देखकर प्रसा होने पर मी कुछ बोली नहीं। हाँ आँखों में ही हँसकर ( अपना) हाथ ( पहले ) हृदय पर रख (फिर उसे) सिर पर रक्खा-(अर्थात् ) हृदय में बसते हो, प्रणाम करती हूँ ! ( खासी सलामी दगी !) भेटत बनै न भावतो चितु तरमतु अति प्यार । धरति लगाइ-लगाइ उर भूषन बसन हथ्यार ।। ३२९ ।।