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सटीक : बेनीपुरी
 

अन्वय—सकुच सुरत आरंभ हीं लाज लजाइ बिछुरी ढीठि ढिठाई आइ ढार ढुरि ढरकि ढिग भई—अथवा—डीठि ढिठाई ढरकि ढार ढुरि आइ ढिग भई।

सकुच=(१)सकुचाकर (२) कुच-सहित। ढरकि=ढरककर, खिसककर। ढार ढुरि=अनुकूल या प्रसन्न हो।

(१) सकुचाकर समागम के प्रारम्भ में ही (वह नायिका) नाज से लजाकर दूर हट गई; किन्तु ढीठ ढिठाई के आने पर वह सहर्ष खिसककर निकट आ गई—(पहले लजावश अलग हट गई; पर जब ढिठाई ने उत्साहित किया, तब पास चली आई)। अथवा—(२) कुच स्पर्श के साथ समागम के आरम्म होते ही लज्जा (बेचारी) लजाकर दूर हो गई (लाज जाती रही) और धृष्ट धृष्टता खिसककर, प्रसन्न हो, निकट आकर उपस्थित हुई—(लजीली लाज भगी और शोख ढिठाई सामने आई)।

पति रति की बतियाँ कहीं सखी लखी मुसकाइ।
कै कै सबै टलाटली अली चलीं सुख पाइ॥३३७॥

अन्वय—पति रति की बतियाँ कहीं सखी मुसुकाइ लख सबै अली टलाटली कै कै सुख पाइ चलीं।

रति=समागम। लखी=देखी। टलाटली=टालमटूल, बहाना। अली=सखियाँ। सुख पाइ=सुखी (प्रसन्न) होकर।

पति ने (इशारे से) रति की बातें कहीं, (इसपर नायिका ने) सखियों की ओर मुस्कुराकर देखा। (मर्म समझकर) सब सखियाँ टालमटूल कर-करके प्रसन्न हो (वहाँ से) चल दीं।

चमक तमक हाँसी ससक मसक झपट लपटानि।
ए जिहि रति सो रति मुकुति और मुकुति अति हानि॥३३८॥

अन्वय—(ज्यों का ज्यों)

चमकना और तमकना—कभी चिहुँक उठना और कभी क्रोधित हो जाना, हँसना और सिसकना—कभी मजा पाने पर हँस पड़ना और कभी जोर पड़ने पर कष्ट से सी-सी करना; मसकना और झपटकर लिपटना—शरीर के मर्दित