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बिहारी-सतसई
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हँसि ओठनु बिच कर उचै कियैं निचौहै नैन।
खरैं अरैं पिय कैं प्रिया लगी बिरी मुख दैन॥३४८॥

अन्वय—ओठनु बिच हँसि कर उचै, नैन निचौंहै कियैं प्रिया खरैं अरैं पिय कैं मुख बिरी देन लगी।

उचै = ऊँचा कर। निचौंहै = नीचे की ओर। खरे = अत्यन्त। अरे = हठ किये (अड़े) हुए। बिरी = पान का वीड़ा। दैन लगी = देने लगी।

(प्रीतम ने प्यारी के हाथों से पान खाने का हठ किया, इसपर) ओठों के बीच में हँसकर—कुछ मुस्कुराकर—हाथ ऊँचा कर और आँखें नीची किये प्यारी अत्यन्त हठ किये हुए प्रीतम के मुख में पान का बीड़ा देने लगी।

नाक मोरि नाही ककै नारि निहोरैं लेइ।
छुवत ओंठ बिय आँगुरिनु बिरी बदन प्यौ देइ॥३४९॥

अन्वय—नाक मोरि नाहीं ककै नारि निहोरैं लेइ आँगुरिनु बिय ओंठ छुवत प्यौ बदन बिरी देइ।

नाक मोरि = नाक सिकोड़कर। ककै = करके। नारि = स्त्री, नायिका। निहोरे = आग्रह या अनुनय-विनय करने पर। बिय = दोनों। बिरी = पान का बीड़ा । बदन =मुख । प्यौ=प्रीतम, नायक । नाक सिकोड़कर नहीं नहीं करके नायिका निहोरा करने पर (बीड़ा) लेती है, और नायक अँगुलियों से दोनों ओठ छूते हुए नायिका के मुख में पान का बीड़ा देता है।

नोट—दोनों नजाकत से भरे हैं। नायिका लेते समय नहीं-नहीं करती है, तो नायक देते समय उसके कोमल गुलाबी ओठों को ही छू लेता है।

सरस सुमिल चित तुरँग की करि-करि अमित उठान।
गोइ निबाहैं जीतियै प्रेम-खेलि चौगान॥३५०॥

अन्वय—सरस सुमिल चित तुरँग की अमित उठान करि करि गोइ निबाहैं प्रेम-खेलि चौगान जीतियै।

सरस = 'प्रेम' के अर्थ में 'रसयुक्त' और 'घोड़े' के अर्थ में 'पुष्ट'। सुमिल = (१) मिलनसार (२) जो सवार के इच्छानुसार दौड़े। अमित = अनेक।