पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/१६०

विकिस्रोत से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। बिहारी-सतसई १४० हँसि ओठनु बिच कर उचै कि निचौहै नैन । खरै अरे पिय के प्रिया लगी बिरी मुख दैन ॥ ३४८ ॥ अन्वय-ओठनु विच हँसि कर उचै, नैन निचौं है कि प्रिया खरै अरै पिय के मुख बिरी देन लगी। उचै= ऊँचा कर । निचौहै नीचे की ओर । खरे= अत्यन्त । अरे हठ किये ( अड़े ) हुए । बिरी-पान का वीड़ा । दैन लगी=देने लगी। (प्रीतम ने प्यारी के हाथों से पान खाने का हठ किया, इसपर ) मोरों के बीच में हँसकर -कुछ मुस्कुराकर-हाथ ऊँचा कर और आँखें नीची किये प्यारी अत्यन्त हठ किये हुए प्रीतम के मुख में पान का बीड़ा देने लगी। नाक मोरि नाही ककै नारि निहोरै लेइ । छुवत ओंठ बिय आँगुरिनु बिरी बदन प्यौ देइ ॥ ३४९ ।। अन्वय-नाक मोरि नाहीं ककै नारि निहोरै लेइ प्राँगुरिनु बिय ओंठ छुवत 'प्यो बदन बिरी देइ। नाक मोरि=नाक सिकोड़कर । ककै = करके । नारि=स्त्री, नायिका । निहोरे t=आग्रह या अनुनय-विनय करने पर । बिय दोनों। बिरी-पान का बीड़ा । बदन =मुख । प्यौ=प्रीतम, नायक । नाक सिकोड़कर नहीं नहीं करके नायिका निहोरा करने पर (बीड़ा) लेती है, और नायक अँगुलियों से दोनों श्रोठ छूते हुए नायिका के मुख में पान का बीड़ा देता है। नोट-दोनों नजाकत से भरे हैं। नायिका लेते समय नहीं-नहीं करती है, तो नायक देते समय उसके कोमल गुलाबी अोठों को ही छू लेता है। सरस सुमिल चित तुरूंग की करि-करि अमित उठान । गोइ निबाह जीतियै प्रेम-खेलि चौगान ॥३५०॥ अन्वय -सरस सुमिल चित तुरूंग की अमित उठान करि करि गोइ निबाहै प्रेम-खेलि चौगान जीतियै । सरस = 'प्रेम' के अर्थ में 'रसयुक्त' और 'घोड़े के अर्थ में 'पुष्ट' । सुमिल =(१) मिलनसार (२) जो सवार के इच्छानुसार दौड़े। अमित = भनेक । .